शौक
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बचपन से लेकर जवानी तक ना जाने कितने शौक जीवन मे शुमार हुए,
कुछ पुरे होते गए कुछ बिखरते गए
कुछ को तो मैने चुपके से जी लिया।
गीली मिट्टी की सौंधी सी खुशबूू लेने का शौक बहुत था बचपन मे आज वो शौक अपने घर मे लगे चार गमले मे पानी डालते वक्त पूरा कर लेती हूं,
पर, पर कुछ फर्क सा है इस मिट्टी की खुशबू और उस मिट्टी की सुगंध मे।
बचपन के गुड्डे गुडिया अब मेरे बच्चो मे बदल गये है, अपनी चित्रकारी का शौक उनकी ड्राईंग बुक मे पुरा करती हूं।
घर घर खेलने का शौक कब घर संभालना सिखा गया पता ना चला।
समय बदलता गया शौक बदलते गये,
कुछ नये शौक ने जन्म लिया,कुछ पुराने शौक वहीं तटस्थ रहे।।
शुभम्.
6 comments:
बहुत खूब
धन्यवाद
जी शुक्रिया
बहुत सुन्दर
सादर
सुंदर वास्तविकता के करीब सरस अभिव्यक्ति।
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