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Thursday, December 31, 2009

मन...

मन एक पंछी के जैसे हर पल उड़ना चाहे,
उम्मीदों के पंख लगा कर गगन को छूना चाहे,
कल क्या होगा कोई न जाने,
ये मतवाला तो बस आज को जीना चाहे

ये मन भी बांवरा है कैसे-कैसे ख्वाब दिखाए,
हकीक़त में जो दूर है,उसके करीब ले जाये,
काश इसकी सब आशा पूरी हो
जो ये चाहे बस इसे वो ही मिल जाये

पर
सच्चाई इस कुदरत की कुछ और ही दिखती है,
मन की उदारी भी इक दिन आ कर रूकती है
टूटते हैं जब अरमान दिल के तो
सब खुशियाँ हाथ से रेट की तरह फिसलती हैं

वक़्त के साथ फिर हर जख्म भरता जाता है
सपना कोई नया तब किसी कोने में बुनता जाता है
बार-२ ठोकर खा कर भी ये दिल
वो ही गलती करने को तैयार होता जाता है

Wednesday, December 30, 2009

नया साल

क्या खोया क्या पाया इसका हिसाब क्यों है ?

मन वो ही, हम वो ही, वो ही रूह है ॥

फिर भी साल बदलने के साथ ही

सूरत ऐ हाल बदलने का दिल करता है

नयी उम्मीदों और नए सपनो को पंख लग जाते है

बुरे अहसासों को भूल जाने का दिल करता है ॥

कुछ ज्यदा बदलने वाला नहीं है

घडी के काटों और कलेंडर के पन्ने बदलने से

फिर भी आँखों में नए ख्वाब से क्यों है ?

क्या खोया क्या पाया इस का हिसाब क्यों है?!!

चलो ढलते हुए सूरज के साथ हम भी अपने
बुरे वक़्त को छोड़ चले पीछे ॥
और आने वाले साल मै कुछ नयी खुशियों का स्वागत करे
आज हमारा भी मन पुराणी बोटेल में नयी शराब सा क्यों है ?

क्या खोया क्या पाया इसका हिसाब क्यों है ?

हैप्पी न्यू इयर २०१०
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