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Monday, March 21, 2011

इस आग को हवा दीजिये ...


ये कविता कहानी है मलाड कि निधि गुप्ता कि जिन्होंने कुछ दिन पहले हार के अपने आप को इस ज़माने के गम से जुदा कर लिया ,लेकिन उसका यूँ जाना इस दिल को बहुत अखरा है... यूँ ही हार के अपने आप को खत्म कर लेना किसी भी परेशानी का हल नहीं है , आप को जीना सीखना होगा , आप को दर्द को अपनी ताकत बनानी होगी ...अब इस चिंगारी को हर एक को अपने अन्दर जलानी होगी ||

क्यों वो रिश्तो का बोझ उठाये जा रही है ,?
क्यों वो सूखे फूल सी मुरझा रही है ...??
भगवान में आस्था रखने वाली वो ...
अपने बनाये इंसान से ,अब तक क्यों धोखा खा रही है ??
क्यों वो रिश्तो का बोझ उठाये जा रही है ...?

न जानें क्यों वों सहमी सहमी रहती है ? न जानें क्यों वों सब कुछ सहती है ?
क्यों हर कोई उसका साथ छोड़ देता है ? क्यों हर कोई उससे मुहं मोड़ लेता है ??
क्यों स्त्री आज भी अग्नि परीक्षा कि रस्म निभाए जा रही है ?
क्यों वो रिश्तो का बोझ उठाये जा रही है ,??

सीता कि अग्नि परीक्षा एक प्रथा बन चुकी है, आज हर स्त्री कि यही व्यथा बन चुकी है
चुप रह के अन्याय को सह लो ,और सर उठा के चलना है तो घुट घुट के रह लो ||
और गर घुटन हद से गुजर जाए तो कर लो फ़ना जिन्दगी के सफ़र को
पर क्यों वों ऐसा कर , लाखो के जीने कि लौं को बुझा रही है ?
क्यों वो रिश्तो का बोझ उठाये जा रही है ??

अब समय इस आग में जलने का नहीं है ,इस आग को अपने अन्दर जलाने का है
समय कमजोर बन के सब कुछ सहने का नहीं है ,अन्याय का पुरजोर विरोध करने का है
अबला को अब बला बनना होगा , सीता को दुर्गा का रूप धरना होगा
हर एक स्त्री को खुद के लिये कदम से कदम मिला के चलना होगा ||

'निधि' कि चिता कि चिंगारी को हवा दीजिये , इस चिंगारी को शोला बना लीजिये
दो टूक जवाब दीजिये अन्याय को दुनिए के , क्युकी ये दुनिए आप को भरमा रही है ||
"विजय" साथ होगी हर कदम पे , गर आप अपना कदम खुद उठा रही है ||
खुद में हिम्मत है तेरे, तुझ से जमाना है फिर क्यों तू ज़माने से घबरा रही है
क्यों तू सूखे फूल सी मुरझा रही है ...??

Thursday, March 17, 2011

रंगों भरी होली



आप सभी पाठकों को और हमारी कलम से जुड़े हर एक इंसान को दिल कि कलम परिवार कि और से शुभ होली|
ये होली आप के जीवन में खुशियों के रंग बिखेर दे ||

दिल कि कलम परिवार में एक और नया मेहमान हाजिर है अपनी कलम कि लिखी को आप के दिल तक पहुचाने के लिये ... आशा है आप का साथ और आशीर्वाद हमे कमेन्ट के रूप में मिलता रहेगा ,

शुभ होली ||

धन्यवाद

दिल कि कलम से...

सुन
री सखी आई है होली, मैं भी खेलूंगी तेरे संग होली
उमंग
है तरंग है मन में ,बीती होली की यादें है मन में
सुन
री सखी आई है होली...

वो
करते रहना सारे दिन ठिठोली, याद आती है वो बचपन की होली
वो गुन्झियाँ , वो रंगबिरंगे गुलाल , कहीं लाल पीले तो कहीं काले होते गोरे गाल ||

उड़ते रंग आसमन में , दिखते एक से चेहरे हर इंसान में ...

वो शरारती तेवर , वो प्यार भरी बोली .. चारो और भागती पानी लिये बच्चों कि टोली ..

सुन री सखी आई है होली....

होली के रंग आज भी बदले नहीं उतने, रिश्ते और संस्कार बदले है जितने ..
आज कहीं पे जल रही है रिश्तों की होली, तो कहीं पे चल रही है बन्दुक से गोली
दिल
में उमंग तो है पर मन सहमा सहमा है, खुशियाँ मन में है और हमें कुछ कहना है..
इच्छा दिल की हो इस बार ऐसी होली, खुशियों के हो रंग , संग में हो चावल रोली
डोर
हो ऐसी रिश्तों की जैसे दामन चोली,खेलूंगी री सखी तब मैं भी होली
सुन री सखी आई है होली...

Saturday, March 12, 2011

ये मुंबई है मेरे यार ..





थोड़ी सी जानी सी है थोड़ी पहचानी सी ....ये मुंबई फिर भी अनजानी सी है
यहाँ हर कोई अपना सा है ...ऊँची ऊँची इमारते इक सपना सा है ...
नयी इमारते मन को देती सुकून सी है
और पुरानी खड़ी ....अपने आप में जूनून सी है ॥
लोकल से तेज चलते आदमी है ...फिर भी मंजिल क़दमों से दूर है
दिन भर कि भाग दोड़ में हर एक थक के चूर है ,
फिर भी मुंबईकर होने का अजब सा गुरुर है ||
न जाने इतने लोग मुंबई में आये कहाँ से है ?
भगवान ने इतने अलग-अलग चेहरे बनाये कहाँ से है ??
यहाँ हर एक करता अपनी मनमानी सी है
ये मुंबई फिर भी अनजानी सी है ||
हर एक भाग रहा है इस शहर में अपनी पहचान बनाने को
हर एक छोड़ देना चाहता है अपने पीछे ज़माने को |
मुंबई हमेशा खुली है हर एक का घर बसाने को ||
ये मुंबई दिलवालों के लिये दीवानी सी है ...
ये मुंबई फिर भी अनजानी सी है ||
यहाँ छोटी छोटी "चालों" में ... जिन्दगी बसर करती है...
बड़ी - बड़ी इमारतों में बननें वाली चालें ,पूरे देश पे असर करती है ...
यहाँ हर एक कि शक्ल हीरो सी है , सभी के सपनों कि कीमत जीरो सी है ...
किसी के लिये मुंबई मज़बूरी है , किसी के लिये मुंबई जरुरी है ...
कसमों-वादों कि जिन्दगी.... निभानी सी है
ये मुंबई फिर भी अनजानी सी है ..||
मुंबई कभी सोती नहीं है , कितना भी दर्द मिले कभी रोती नहीं है ...
मुंबई ने थकना नहीं सिखा , किसी भी मोड़ पे रुकना नहीं सिखा ..
इसकी फितरत बुढ़ापे में जवानी सी है, ये मुंबई फिर भी अनजानी सी है ||
सलाम मुंबई ||

Tuesday, March 8, 2011

अनजानी हमसफर


कभी कभी अनजाने में ही शब्द कविता का रूप ले लेते हैं , कल रात कुछ ऐसा हमारे साथ भी हुआ है ट्रेन कि उस अनजान हमसफर के नाम हमारा प्यार भरा सलाम :-

वो तन्हाँ सफ़र था ...जिस में वो कुछ पल का हमसफर था
हम ट्रेन कि रफ़्तार और आईपॉड के संगीत मे खोये थे
कुछ जागे थे कुछ सोये थे ||
साइड सीट से ,कर रहे थे पूरी ट्रेन का मुआयना ..
और अपने साथ कि सीट पे बाकी था किसी का आना ...
हसीं इत्फाक देखिये कि उस अनजान शख्स ने
अपनी सीट उस "अनजानी हसीना" से बदली..
और हमे कुछ नयी रचना लिखने को मिली ...
खामोश निगाहें , मासूम चेहरा , जुल्फों को फैलाये , अपने में ही समायें
वो आ कर बैठी थी मेरे सामने गुमसुम सी ...
लाखो सवाल लिये , लेकिन किसी से बिना कुछ कहे
वो आ कर बैठी थी मेरे सामने चुप चुप सी ....
उसे कुछ झिजक सी थी , शायद कुछ वो थकी सी थी
मंजिल कि आस लिये , उसकी नजरें रुकी सी थी
अपनी ही माटी कि सुगंध थी उसकी बातो में
और कोई खास अपना था उसकी यादों में ||
उसे चिंता थी अपने सामान कि
और पढ़ सकती थी वो आँखे हर इंसान कि ...
नजाकत भरी उसकी आँखे पूरे समय झुकी सी थी ||
धडकन अपनी भी तो रुकी सी थी ||
बातें कुछ ही हुई थी हमारे बीच हलकी बारिश कि रिमझिम सी ..
वो बैठी थी मेरे सामने गुमसुम सी ...
पूरे रास्ते वो मौन थी , न जाने वो अनजानी हसीना कोंन थी ?
एक हसीं ख्वाब था जो गहरी नींद में कहीं खो गया ... ||
वो चली गयी गहरी रात में , और में बुद्धू बड़ी जल्दी सो गया ||
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