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Monday, December 26, 2011

वो अपनी उम्र से कुछ ज्यादा, बड़ी सी लगती है ||


वो अपनी उम्र से कुछ ज्यादा, बड़ी सी लगती है
उसके जीवन में खुशियों की, कमी सी लगती है |
मुस्कराती है ज़माने को, दिखाने के खातिर
अन्दर उसके , आसुओं की झड़ी सी लगती है
वो अपनी उम्र से कुछ ज्यादा, बड़ी सी लगती है ||

उसका बचपना छूट गया, जवानी की दहलीज पे
ज्यादा दिन टिक ना सका, यौवन का खुमार..|
कभी खुद लापरवाह , कभी रिश्ते बेपरवाह
जिन्दगी अब उसकी, मज़बूरी सी लगती है ..|
वो अपनी उम्र से कुछ ज्यादा, बड़ी सी लगती है ||

किसी की नफरत ने , उसे बड़ा बना दिया |
किसी की फितरत ने, उसे बड़ा बना दिया |
आसुओं को पीती रही , गमों को सीती रही
अपने दर्द को उसने , हमेशा हँसी में उड़ा दिया |

वक्त बेवक्त भीगी पलकें ,अश्कों को उसकी, मंजूरी सी लगती है
वो अपनी उम्र से कुछ ज्यादा , बड़ी सी लगती है ||

Tuesday, December 20, 2011

वक्त आ गया है ... हैप्पी विंटर


वक्त आ गया है ...
उस महरूनी स्वेटर, को फिर से बनाने का
मुन्ना को सर्दी से बचाने का ||
वो दो - बटा चार के फंदे, सलाइयों में डालने का
पुरानी पड़ी ऊन, को सँभालने का ||

वक्त आ गया है ...
वो उसका ऊन के गोले को , मुझ से दूर ले जाना
उसको समेटते, समेटते , उसका मुझमे समा जाना ||
ऊन में पड़ चुकी , उलझनों को सुलझाने का
मासूमियत से रिश्ते निभाने का ,
फिर वक्त आ गया है ...;) वक्त आ गया है ...;) ||

रिश्तों में गर्माहट लाने का , मीठी धुप को कतरें कतरें तक पहुँचाने का
तिल , रेवड़ी , गजक , गर्म गाजर का हलवा खाने का
वक्त आ गया है ...;) ||

अब आप भी ग़मों को खोल कर , छत पर सुखा दो
अपनी खुशियों को थोड़ी हवा लगा दो
वक्त आ गया है सीलन को मिटाने का , दुखों को अलाव में जलाने का
जीवन से कड़वाहट मिटने का , अपनों को करीब लाने का
वक्त आ गया है ...;) ||वक्त आ गया है ...;) ||

happy winters ||

मैंने देखा इस साल में .....2011



मैंने देखा इस साल में .....
नेताओं को तिहाड़ जेल में आराम फरमाते , आतंकवादी को राजकीय अतिथि सा सम्मान पाते
मैंने वर्ल्ड कप को अपने हाथ में देखा , पूरे देश को अन्ना के साथ में देखा |
मैंने किंगफिशर का नशा उतरते देखा , सोने को तेजी से चढ़ता देखा |
मैंने खून से सनी मुंबई देखी ... देखी, खून से सनी दिल्ली
आम जन मरतें रहें ... और नेता ...बैठे रहें बन के भीगी बिल्ली ||

मैंने देखा इस साल में ...
गरीब के साथ साथ , मिडल क्लास को भी रोते हुए ... सरकार को कान में रुई डाल के सोते हुए |
मैंने महंगाई की मार देखी .... मैंने भूख से हाहाकार देखी |
मैंने संसद में सिर्फ हंगामा और बहस देखी , मैंने किसान की जमीं पर कार रेस देखी |
मैंने रामलीला में लोकतंत्र को पिटते देखा ... नारी की इज्जत को सरे आम लुटते देखा |
राजनेताओं को लगा "भंवरी" का रोग देखा ... "सीबीआई" का बेजा दुरूपयोग देखा ||
मैंने "ममता" को मिलते राज देखा .... "सुशिल कुमार" को पहने ताज देखा |
मैंने देखी हत्या पत्रकार की ... सूरत देखी घोटालों वाली सरकार की |

मैंने देखा इस साल में ....
मेरे "अपनों" को हमेशा के लिए जुदा होते हुए ....उनकी याद में हर एक को रोते हुए :(
मैंने देखा हर दिल अजीज शम्मी कपूर को जातें हुए .... उस जवान आदमी(देवानंद ) को भी लोगो को रुलाते हुए |
मैंने रुआंसी गजल(जगजीत सिंह ) देखी ...... नविन (नविन निश्चल) के लियें आँखें सजल देखी |
दो उस्तादों को आखरी सलाम देखा | (भूपेन हजारिका / उस्ताद सुल्तान खां )
प्रधानमंत्री की होड़ में , सब से उपर मोदी का नाम देखा |

इस साल मैंने जिन्दगी का हर उतार चड़ाव देखा , हर महीने पेट्रोल का एक नया भाव देखा ||
मैंने जनता का लोकतंत्र के गाल पर तमाचा देखा..उन्नति का, "खाली कागजों" में सरकारी खांचा देखा |
अब बस गुजारिश ऊपर वाले से इतनी, की या तो , इस राजनीती को वो खुद संभालें |
या फिर हम को भी अब अपने पास बुलाले | :)
इस महंगाई में , भ्रष्ट तंत्र में अपना दम घुटता है ...
बच्चों की छोटी फरमाइश के आगे भी , अब अपना सर झुकता है |
इस साल महंगाई ने , अपनी कमर भी तोड़ डाली है ,
कैसे मनाऊं जश्न नये साल का , मेरी दोनों जेबें खाली है :(
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