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Friday, April 22, 2011

गुजरात दंगो का दर्द ...


मुझे पता है क्या हुआ था उस रात को ,
लेकिन मैं भूल जाना चाहता हूँ हर उस बात को ,
क्यूंकि उस हर बात से मेरे जख्म हरे होते है
उस खुनी शाम को याद कर मेरे सपने आज भी डरें होते है ||

क्या होगा कब्रों को फिर से जिन्दा कर के ?
हजारों बेगुनाहों कि लाशों को बार बार शर्मिंदा कर के ?
राजनीती ने लाशें बिछाई है ,अब मुझे लाशों पे राजनीती नहीं चाहिए
मुझे हर सफ़ेद कपड़ा कफ़न नज़र आता है ,अब मुझे किसी कि सहानुभूति नहीं चाहियें ||
वो एक तूफ़ान था जो उड़ा ले गया सब कुछ ...
अब चिंगारी को फिर से हवा दे के फिर से आग न लगाइए
मकान पक्के बन चुके है, फिर से उनकी नीवें हिलाने मत जाइए ||

तू सही था या था तू गलत मुझे उस से अब सरोकार नहीं
क्यूंकि मैं जानता हूँ ऊपर वाले कि लाठी को आवाज़ कि दरकार नहीं ||
मैं तरक्की पसंद मुल्क चाहता हूँ , मैं जीना चाहता हूँ अमन चैन से...
तू अपने आप को कितना भी बड़ा समझ ले ,
पर ध्यान रख कोई बच नहीं सकता उसके तीसरे नैन से ||

Monday, April 18, 2011

मुर्दों कि बस्ती में घर


मैंने मुर्दों कि बस्ती में, अपना घर बना लिया है ,
अपने हक कि आवाज़ को भी कब्र में दफना दिया है॥
चारों और जिन्दा लाशों से घिरा बैठा हूँ मैं
अपने ईमान को भी दीवारों में चुनवा दिया है
मैंने मुर्दों कि बस्ती में अपना घर बना लिया है॥

मेरी अंतरात्मा कि आवाज़ भी अब मेरे कानों तक नहीं आती
आँखे क्या खोलूं मैं, पीर मुझ से किसी कि देखी नहीं जाती ||
ये "लोकतंत्र" कुछ ही लोगो को आ रहा है रास
बाकी भारतीय तो भोग रहे है आजीवन वनवास ||
किस -किस को दोष दूँ मैं .. ..सब ने आज़ादी का तमगा लगा लिया है |
मैंने मुर्दों कि बस्ती में अपना घर बना लिया है॥
अपने हक कि आवाज़ को भी कब्र में दफना दिया है॥

न पक्ष को मेरी पड़ी है और न ही विपक्ष को मेरी पड़ी है
हर एक सफ़ेद पोश कि आँखों पे काली पट्टी चढ़ी है ॥
सफ़ेद कपडे वालों के दिल है कितने काले
दिख रहे है दूर तक घोटाले ही घोटाले
और जो थामने चला मैं लाल किले के तिरंगे को
जख्म से नासूर हो गये मेरे पैर के छाले
मैं सह रहा हूँ जीने का दर्द, इस दर्द को ही अब मैंने जीवन बना लिया है |
मैंने मुर्दों कि बस्ती में अपना घर बना लिया है ,
अपने हक कि आवाज़ को भी कब्र में दफना दिया है॥

Tuesday, April 5, 2011

मेरा इंतजार...


ऐ डाकिये मुझे उस घर का पता बता दे , जिस घर के कागज कलम को आज भी मेरा इंतजार है
जा ,ये ख़त उस तलक पहुचां दे , जिस को अब तक मेरे आने का ऐतबार है ||
अब पतझड़ के पत्तो को हवा दे , रुकी इंतज़ार कि घड़ियों को अब तो चला दे |
जा उसको मेरा पैगाम दे , जो झरोखे से झांकती... तेरे अक्स में , कर रही मेरा दीदार है ||
जा ,ये ख़त उस तलक पहुचां दे , जिस को अब तक मेरे आने का ऐतबार है ||

तू जो गुजरेगा उसकी गली से, तो उसकी पायल मे भी खनक होगी
उसकी और बढ़ते तेरे कदम देख , उसकी आँखों में अजब सी चमक होगी ||
जा अब उसका पता लगा ले , जिस पे ज़माने कि हर खुशियाँ निसार है
जा ,ये ख़त उस तलक पहुचां दे , जिस को अब तक मेरे आने का ऐतबार है ||

कुछ अधूरे ख्वाब है , कुछ अधूरे हम , कुछ अधूरी खुशियाँ उसके बिना , कुछ पूरे गम ||
अब आईने को हँसना सिखा दे.., एक झलक उसकी दिखा दे , क्यों इंतज़ार ही हर बार है ?
जा ,ये ख़त उस तलक पहुचां दे , जिस को अब तक मेरे आने का ऐतबार है ||

उसने भी कभी कागज़ पे ... मेरी तस्वीर उकेरी होगी ....आड़ी- टेडी लकीरों से...
उसको भी कभी दुआ में, मिलें होंगे मेरे ख्वाब , आते - जाते फकीरों से ||
जा उसको अब बता दे , वो मेरा अनकहा सा, अनछुआ सा , अजीज प्यार है
जा ,ये ख़त उस तलक पहुचां दे , जिस को अब तक मेरे आने का ऐतबार है ||
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