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Friday, December 17, 2010

शीला की जवानी



महगांई ने लूटा सब का चैन , दो जून की रोटी भी मन को कर रही बेचैन ,
आलू
, प्याज, टमाटर, भिन्डी ,के भाव सुन आँखों में आ जाता पानी ||
अब जख्मों पे मरहम लगाती ... सिर्फ शीला की जवानी ॥

"कांग्रेस" का "हाथ" ..गरीब के साथ का था वादा,
गरीब के तन से कपडा उतरा , अब वो शरीर से हो गया आधा॥
ये हाथ इतना भारी पड़ा है की हर एक हाथ फैलाये खड़ा है ,
रोती आँखे भूखा पेट हर गरीब की निशानी ...
लाल किले के कानों तक कोई पहुचां दे ये कहानी

अब जख्मों पे मरहम लगाती ... सिर्फ शीला की जवानी ॥

गांधी अब हमारी कुटिया में नहीं आते ..
वो तो अफसरों , नेताओं ,रसूखदारों , अमीरों के यहाँ डेरा जमाए है,
जब भी हमने अपनी जेब में हाथ डाला, बस चंद सिक्के ही पाए है ||
वो भी हमने अपनी बीवी और बच्चो से छुपाये है ,क्योंकी अभी पुरे माह से है निभानी
अब जख्मों पे मरहम लगाती ... सिर्फ शीला की जवानी ॥

भला हो शीला तेरा , तुझे देख के कुछ पल ख़ुशी के जी लेते है ,
बहला लेते है मन को... और आँसू को पी लेते है!
वरना 'मनमोहन' के राज ने सब को याद दिला दी नानी...
अब जख्मों पे मरहम लगाती ... सिर्फ शीला की जवानी ॥

Saturday, December 4, 2010

मैंने देखा इस साल में ...



मेरी नजरो से पूरे साल का हाल ...
मैंने देखा इस साल में ...
विदेशों में अपनों का खून बहते हुए , अपने घरों में लोगो को सहमे सहमे रहते हुए
बेकरी में लोगो को तड़पते देखा , मंदिर से लाशों को उतरते देखा ॥
हजारों को चिरनिद्रा में ले गयी रेल , अरबों के घोटाले दे गया कॉमन वेल्थ खेल ,
महंगाई ने छिना आम आदमी का चैन , भारी बारिश फिर कर गयी बैचेन ॥

मैंने देखा इस साल में ...
प्यार करने वालो को समाज के हाथों मरते हुए .... आतंकवाद से ज्यादा नक्सलियों से लोगो को डरते हुए ॥
सड़ता हुआ अनाज देखा गोदामों में , भूख से बिलखती जिन्दगी शमशानों में,
अकेलेपन से( विवेका बाबाजी) घुट के किसी को मरते देखा , हर तरफ स्त्री को वासना भरी नजरो से डरते देखा ॥
जनता को जागते देखा साम्प्रदायिक ताकतों को पतली गली से भागते देखा
मिलते देखा मैंने अल्लाह और राम को , दुनिया का 'दबंग'(ओबामा ) भी मान गया मेरे नाम को
मैंने देखा मुन्नी को बदनाम होते हुए , शीला को जवान होते हुए
मेरे हालात पे काली पट्टी पहने सफ़ेद पुतले को रोते हुए ॥

मैंने देखा इस साल में ...
माटी के दो लालों(बसु / शेखावत) को माटी में मिलते हुए ...
काम करने वालों के सर पे ताज और बाहुबलियों के हाथों से सत्ता को निकलते हुए ॥
मैंने देखा इस साल में ...
"आदर्श" नेताओं के चेहरे काले , गरीब प्रजा के अरबों रुपये "राजा" के हवाले
जख्म हर हिस्से में मेरे, गुजारिश फिर भी इतनी... इस भ्रष्ट तंत्र को फिर से कोई "बापू" संभाले!!
में टूट चूका हूँ क्युकी मेरे सिपहसलार ही मुझे लूट रहे है ,सपने मेरे 'सोने की चिड़िया' के पीछे छुट रहे है
गम ही गम है मेरे चारों और किसे सुनाऊं अपने अश्को का शोर ?
उम्मीद है मेरे दामन में कुछ पल खुशियों के लाएगी आने वाले साल की पहली भौर... !!

Wednesday, November 17, 2010

अपील :- जियो और जीने दो..


ये उस बेजुबान जानवर की अपील है जो शायद यदि बोल सकता तो आज इन्सान को इंसानियत का पाठ पढाता उन्हें जियो और जीने दो सिखाता ...

मैं मस्जिद गया मुझे अल्लाह मिला , मंदिर गया भगवान मिला
इंसान की तलाश में जब भी निकला मुझे हर शख्स हैवान मिला !!
मुझे मार कर के ये, अपने इंसान होने का दम भरते है ?
इतना प्यारा है इन्हें तू , फिर अपने जिगर के टुकड़े को क्यों नहीं तेरे नाम करते हैं ?
मेरे खून से लिख रहा है आज हर शख्स खुशियों की इबारत ....
तेरे ही नाम पे हो कुर्बानी हमारी, तो कोंन करेगा हमारी इफाजत ?
आलम है अब ये, जब भी लिया तेरा नाम किसी ने, मेरा पूरा कुनबा परेशां मिला ...
जिस दर से जी जाते है मुर्दे , उसी पाक दर में मुझे मेरा क़ब्रिस्तान मिला
इंसान की तलाश में जब भी निकला मुझे हर शख्स हैवान मिला !!
ऐ खुदा ये अपील है मेरी, मुझे किसी भी जीवन में इंसान मत बनाना
में तेरा नाम ले कर के किसी का खून बहा नहीं सकता
ऐसे कुर्बान हो के में खुश कर रहा हूँ इन्हें..
इंसान बन के में किसी के काम आ नहीं सकता !!
लगता है यूँ , ये जीवन मुझे इनाम मिला ...
इंसान की तलाश में जब भी निकला मुझे हर शख्स हैवान मिला !!

Wednesday, November 3, 2010

मैं क्या दीया जलाऊँ....


मैं क्या दीया जलाऊँ , मेरा तो दिल जल रहा है
इस कद्र अँधेरे से मोहब्बत हो गयी ..रौशनी का त्यौहार आँखों को खल रहा है ...
मैं क्या दिया जलाऊँ , मेरा तो दिल जल रहा है ॥
राम का वनवास हो गया खत्म कब का ...
मेरा अब तक अग्निपरीक्षा का दौर चल रहा है
मैं क्या दिया जलाऊँ , मेरा तो दिल जल रहा है ॥
क्या खास बात है इस अमावस की रात में..?अपनी तो हर रात 'स्याह' है ॥
यहाँ तो हर दिन बड़ी मुश्किल से संभल रहा है
मैं क्या दीया जलाऊँ, मेरा तो दिल जल रहा है॥
मुठ्ठी भर खुशियाँ और दामन खाली हजार
एक दीपक है रोशन करने को और अँधेरे की भरमार
कितनी भी रौशनी दे वो , दीया तल भी अँधेरा मिल रहा है ॥
मैं क्या दीया जलाऊँ , मेरा तो दिल जल रहा है॥
महंगाई की भरमार मिलावट का संसार
कैसे में दीपक जलाऊँ ...न तेल न तेल की धार ..
इस माहोल में तो अब दम निकल रहा है
मैं क्या दीया जलाऊँ , मेरा तो दिल जल रहा है
*** HAPPY DIWALI ****

Saturday, October 23, 2010

वजूद ..


शायद हर स्त्री को इस दर्द से गुजरना पड़ता है हमारे पुरुष प्रधान माज में ...
उसे
लड़ना पड़ता है अपने 'अस्तित्व' के लिए जाने कोंन सी टिस इस मन को लगी है की पहली बार कोई रचना मेने पूरी रात जाग के लिखी है.... इस उम्मीद में की ये किसी एक के अंधियारे जीवन में उम्मीदों का सवेरा ला सके ....


मैं अपने वजूद को तलाश रही हूँ ...मैं बन के जिन्दा लाश रहीं हूँ ॥
माँ जो सुनाया करती थी बचपन में कहानी सुलाने को ॥
मैं अब भी वो परियों वाला बिछोना तलाश रही हूँ ...
मैं बन के जिन्दा लाश रहीं हूँ ॥

बाबुल ने बड़े अरमान से जिसे थमाया था मेरा हाथ की रानी बेटी राज करेगी...
मैं टूटे हुए कंधों पे उठाये उसका बोझ ...बनके एक हमाल रहीं हूँ ...
मैं बन के जिन्दा लाश रहीं हूँ॥

रोली की लाली में छपा मेरा पहला कदम तेरी और ...
धूल में धुल चुके उस निशाँ को ...मैं अब भी फ़र्श पे संभाल रहीं हूँ
मैं बन के जिन्दा लाश रहीं हूँ ॥

न जाने इस घर की दीवारे कांच की बनी है ...?
की मेरी आवाज़ टकरा के मुझ तक ही आ जाती है ॥
सुना है दीवारों के कान होते है ... मैं ऐसी दीवारों को तलाश रहीं हूँ
मैं बन के जिन्दा लाश रही हूँ ॥

इन सब को बनाने में मैंने अपना 'अस्तित्व' मिटा दिया
फिर भी मैं अपने काम से निराश रहीं हूँ ...
मैं बन के जिन्दा लाश रहीं हूँ॥

मेरी मुस्कराहट से वो मेरी ख़ुशी का अंदाजा लगाते है
कोई बताये उन्हें... मैं अन्दर से आसूं का सैलाब रहीं हूँ
मैं बन के जिन्दा लाश रहीं हूँ ॥

और अंत में ये चार लाइन तुझे फिर से जिन्दा करने के लिए ....
माना तू उदास है हताश है
मगर होसलों की उड़ान और सपनो में रंग भरना अभी बाकी है
तू किसी के लिए जिन्दा लाश ही सही लेकिन तेरा होना ही सब के जीने के लिए काफी है ॥
अपने "वजूद" का नवनिर्माण कर "विजय" - पथ तेरी राहों में होगा ॥

Wednesday, September 22, 2010

जीवन एक्सप्रेस

 (पंडित अभिनव जी कृत)

रेल चली भाई रेल चली, दो पहियों की रेल चली 
अजब अनोखी रेल चली, रेल चली भाई रेल चली |

ये गाडी है बड़ी निराली बड़ी तेज़ रफ़्तार है,
नाम है जीवन एक्सप्रेस जिसमे दुनिया सवार है,
तरह तरह के डिब्बे इसमें आगे पीछे खड़े हुए,
सबका नाम देह और तन है एक दूजे से जुड़े हुए,
मौत के इंजन से, सांस के इंधन से, दौड़ रही है गली गली, 
रेल चली भाई रेल चली.......

सुख और दुःख की दो पटरी है जिन पर गाडी भाग रही,
एक सवारी नाम आत्मा एक डिब्बे से झांक रही,
पहला स्टेशन बचपन है बड़ा ही सुन्दर प्यारा,
खेल खिलोने जहाँ बिखरते अजब तरह का नज़ारा,
देख खेल खिलोने रे लगा मुशाफिर रोने रे,
इस रोने हँसने में गाडी धीरे से फिर सरक चली,
रेल चली भाई रेल चली............

अगला स्टेशन जो आया इसका नाम जवानी,
प्यास लगी पेसेंजर उतरा नीचे पीने पानी,
तभी एक और यात्री प्लेटफ़ॉर्म पर आया,
उसको भी डिब्बे में फिर इसने बिठलाया,
साथी में ये ऐसा खोया खेल खिलोने भूल गया,
इस जोड़े को लेकर गाडी तेज़ी से फिर निकल चली,
रेल चली भाई रेल चली.............

आगे को जरा और चली तो डिब्बे में एक शोर हुआ,
एक नन्हा सा और यात्री दोनों के संग और चढ़ा,
तभी तीसरे स्टेशन का सिग्नल इन्हें नजर आया,
नाम बुढ़ापा था जिसका कुछ उजड़ा उजड़ा सा पाया,
गति ट्रेन की मंद हुई खिड़कियाँ सारी बंद हुई,
असमंजस में पड़ा मुशाफिर गाडी फिर भी सरक चली,
रेल चली भाई रेल चली.............

आगे को जरा और चली तो एक बड़ा जंक्सन आया,
पहला यात्री बाहर को झाँका था श्मशान लिखा पाया,
पहला वाला यात्री बोला मुझको यही उतरना है,
ये वो स्टेशन है जहाँ से गाडी मुझे बदलना है,
साथी रोवे खड़े खड़े मिस्टर कौशिक उतर पड़े,
छोड़ के तन को निकली आत्मा दूजी गाडी बैठ चली,
रेल चली भाई रेल चली दो पहियों की रेल चली ||

( चित्र गूगल से साभार )

Sunday, September 19, 2010

रूह से रूह तलक....


अब कुछ ऐसा लिखे जो सब की रूह तलक पहुचें
राह जो पकड़ लें अब... वों मंजिल तलक पहुचें
कांटो पे चलते रहे ....गम नहीं कोई...
पर अब तो पैर के छाले मरहम तलक पहुचें
अब कुछ ऐसा लिखे जो सब की रूह तलक पहुचें
एक अदद ख़ुशी की तलाश में भटकता फिरा में दरबदर ...
अब तो मेरी आवाज़ उस के दर तलक पहुचें
जमीं पे रह के ख्वाब सजाये फलक के
उम्मीद के आवाज़ मेरी दूर तलक पहुचें
में तेरे होने के भ्रम में जिये जा रहा हूँ
कुछ ऐसा कर की अँधेरे में भी तेरी परछाही मुझ तलक पहुचें !!
दर्द में रिसती जिन्दगी पिघलने को बेताब
आंधियां उड़ा ले गयी बचे कुचे से ख्वाब
अब तो सुकून की आबो हवा इस तलक
पहुचें !!
कई सों बरस जीने की तमन्ना थी मेरी
लेकिन पचास भी बड़ी मुश्किल तलक पहुचें !!
है जिन्दगी में परेशानियाँ बहुत मुझे पता है ..
पर हर वो शख्स ख़ुशी से जिये मेरे शब्द जिस तलक
पहुचें !!
अब कुछ ऐसा लिखे जो सब की रूह तलक पहुचें......

Friday, September 17, 2010

Common wealth :- यारो इंडिया बुला लिया ..


कॉमन वेअल्थ -- आम आदमी के धन को देश की इज्जत के नाम पे उड़ाया जा रहा है
यारो इंडिया बुला लिया गाया जा रहा है !!
करोड़ों के काम में अरबों के घोटालें ॥ फिर भी कहते हों देश की इज्जत को संभालें ?
एक गाँव को बनाने में अरबों लगा दियें और हजारों गाँवों के करोड़ों लोगो को फटकारा जा रहा हैं
यारो इंडिया बुला लिया गया जा रहा है !!
यदि ये कॉमन वेअल्थ है तो पहले आम आदमी की हेल्थ सुधारो
फिर कहो विदेशी मेहमान पधारों
आँखे खुली है सब की इन सजावटों से किस को भरमाया जा रहा है?
यारो इंडिया बुला लिया गया जा रहा है !!

कहतें है ये तो खेल है दिलों का मेल है ...
सफेदपोशों के इस खेल ने निकाल दिया आम आदमी का तेल हैं...
अतिथि देवो भवः तो हमारे संस्कार है ... फिर क्यों इतना हो हल्ला मचाया जा रहा है ?
यारो इंडिया बुला लिया गाया जा रहा है !!
लाखों पड़े है भूखे - नंगे और करोड़ों के गाने बनाये जा रहे है
इस खेल में गरीबों के घर जले और अमीर अपने बंगले बनाये जा रहा है
यारो इंडिया बुला लिया गाया जा रहा है !!
सडक किनारे खड़े भिखारी सफ़ेद कारो में बैठे भिखारी की आँखों में खल रहें है
क्युकी इस खेल में रुपये से ज्यादा डॉलर मिल रहे है !!
हिन्दुस्तान की कब्र पे इंडिया को सजाया जा रहा है
यारो इंडिया बुला लिया गया जा रहा है !!

Saturday, September 4, 2010

शब्द गुम है


शब्दों से आज कल कुछ अनबन सी हो गयी है ...
मन में न जाने कितनी उलझन सी हो गयी है... ?
जो 'आह' निकलती थी दिल से शब्दों के रूप में
वो कहीं खो गयी है जिन्दगी की दोड़ - धुप में
शब्दों को तलाशा मैंने ...हरियाली में सूखे में ....
सुबह की पहली किरण में ....ढलती शाम की लाली में ...
खुशहाली में ....बदहाली में ...रहीसी में.... कंगाली में ... ॥
पतझड़ के पत्तों में ....पीपल की छाँव में ...
शहर की भागती जिन्दगी में और रुके थके गाँव में ॥
लेकिन शब्द मौन है और न जाने इसकी वजह कोंन है ?
मुझे 'वाह' नहीं चहिये 'आह' चाहिए
आँखों से बहते नीर को फिर से दवात में भर लो
हे शब्दों मुझ में फिर से अपना घर कर लो ...

Friday, August 13, 2010

आज़ादी....


चारों और यही शोर है ॥ हम आज़ाद है हम आज़ाद है ....
और मैं आज़ादी के मायने तलाश रहा हूँ ......
इन कुछ बरसों में यदि कुछ आज़ाद हुआ ...
वो है गरीबी .... जो आज़ाद है अपने पैर पसारने के लिए ...
महंगाई ... जो आज़ाद है बढ़ने के लिए ....
हमारी पंचायते ... जो आज़ाद है धर्म- जाती के नाम पे ,प्यार करने वालो की बलि देने के लिए ॥
आज़ाद है सरकारी अफसर ऊपर की खाने के लियें ...
नेता आज़ाद है अपने बयानों से बदल जाने के लिए ॥
आज़ाद युवाओं के ख्याल है ...आज़ाद जनता के सवाल है ....
आज़ाद है गरीब भूख से मरने के लिए
आज़ाद है लाखो टन अनाज सड़ने के लिए ...
आज़ाद है आतंकवादी नक्सली किसी का भी खून कर ने के लिए ॥
आज़ाद है रईसों की गाड़ियों के ब्रेक ...आज़ाद है हमारे नए साउंड ट्रैक ....
कपड़ों को तन से हटाने की आजादी है ...अपनों को पराया करने की आज़ादी है ..

इतनी आज़ादी के बाद भी मन को सुकून नहीं है
आँखों से नींद गायब है स्लीपिंग पिल्स की आदत है ..
टीवी मोबाइल इंटरनेट से पीछा छूटे तो
याद कर लेना दो मिनट शहीदों की शहादत को .....
इस बार लाल किले की बजाय उस माँ के घर तिरंगा फेहराया जाए
जिस ने अपना लाल खोया है वतन के लिए ....
बस इतना सा कर दूँ गर आप की इजाजत हों!!
अब हम अंग्रेजो के नहीं अपनों के गुलाम है
पहले लाल टोपी को सलाम था अब लाल बत्ती को सलाम है ॥

Sunday, August 1, 2010

दोस्त


ये रिश्ता सीमाओं से परे है... उमंगो से भरे है ॥
ये साथ हो तो लड़ ले जंग हजारो से ....
और न हो साथ तो मन परछाई से भी डरे है॥
आँखों में सैकड़ों सपने सजा दे ...बेरंग जिन्दगी में रंग भरें है ....
भीड़ में भी अकेला लगे .....गर ये न हो साथ ....
और साथ हो ये ,तो मन तन्हाई में भी ख़ुशी से झूमा करे है ॥
सच्चा साथी राह के कांटो को भी फूल करे है ...
हमेशा उसके मन से हमारे लिए दुआये ही झरे है ...
रंग रूप, जात पात न देखे बस दिल से दिल जुड़ जाए ...
अपने भी जहाँ साथ छोड़ दे...ये साथ निभाए ...
पत्थर की मूरत में जिन्दगी होने का अहसास भरे है ...
और दिल अगर सच्चा हो तो हर सुदामा को कृष्ण मिला करे है ॥


happy friendship day to all

Tuesday, July 27, 2010

क्या है माँ:

एक खूबसूरत अहसास है- माँ
हर मुश्किल में हमारा विश्वास है- माँ

हमारे लिए सारी दुनिया है- माँ

क्यूँकि, बच्चों के लिए खुशियाँ है- माँ

जिसकी गोद हर गम से निजात दिलाती है, वो है- माँ

मेरी हर तकलीफ में याद आती है मुझे- माँ

मेरे सिर पर हाथ रखकर, राहत देती है- माँ

इस मतलबी दुनिया में जिसे कोई मतलब नही , वो है – माँ

धरती पर खुदा का दर्शन है – माँ

दोगली दुनिया में सच्चा दर्पण है – माँ

मंज़िलों के लिए मैं नही जीता, मेरा रास्ता है- माँ

खुदा का भेजा हुआ, एक फरिश्ता है- माँ

सच तो ये है की तुम क्या हो माँ,

मैं लिख नही सकती , बता नही सकती ………………….. माँ

Thursday, July 15, 2010

भारतीय पासपोर्ट ऑफिस = अंधेर नगरी चोपट राज ..



भारतीय पासपोर्ट जिसे बनाने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ती है , काफी जद्धोजहद के बाद ही आप भारतीय पासपोर्ट पा सकते हैं ॥ लेकिन जिस तरह भारत के तमाम सरकारी ऑफिसों की हालत है वैसी ही दशा यहाँ के पासपोर्ट ऑफिस की भी है , ये लोग कितना गंभीर है अपने काम को लेकर के इस का पता आप को ये पासपोर्ट देख के लग गया होगा , जरा गोर कीजिये इस पासपोर्ट पे और इसकी जन्मतिथि देखिये जो है ०२/०३/२०१० ॥
यह पासपोर्ट है अजमेर निवासी रोनक सोगानी का है ....उन्होंने ०२/०३/२०१० को पासपोर्ट के लिए आवेदन किया था
लेकिन पासपोर्ट कार्यलय ने पासपोर्ट जारी करते समय यह देखना भी उचित नहीं समझा की फोटो किसी २ महीने बच्चे की है ? पासपोर्ट पे विदेश मंत्रालय की सिल( स्टंप) है और अधिकारी के हस्ताक्षर है जिसे देख के पता चलता है की कितनी अंधेर नगरी है भारतीय पासपोर्ट कार्यालय जयपुर में ॥
यदि मान भी लिया जाए की किसी नाबालिग को पासपोर्ट जारी किया गया है तो क्या पासपोर्ट ऑफिस ने इसके साथ लगने वाले सभी दस्तावेज देखे ? और क्या पासपोर्ट ऑफिस में इतनी अंधेर नगरी है की वो लोग इसको ऐसे ही जारी कर देते है और यदि ऐसे ही जारी करना है तो किस बात के लिए ४५ से ६० दिन लेते है ?
इस पासपोर्ट को देख के आप सोच ही सकते है की क्यों भारत इतना सोफ्ट टार्गेट है आतंकवादियों का क्यूकी यहाँ के सरकारी कर्मचारियों को खाली महीने के शुरुआत मे अपना वेतन गिनने और दिन भर ऑफिस मे चाय की चुस्की लेने के अलवा कोई काम नहीं है ॥
उन्हें बस आँख मूँद के हस्ताक्षर करने है नहीं देखना है की ये पासपोर्ट किसे जारी हो रहा है क्यों जारी हो रहा है और उसमे क्या लिखा है उससे उन्हें कुछ मतलब नहीं है ....
इसी लिए किसी ने सही कहा है १०० मे से ९० बेईमान फिर भी मेरा भारत देश महान ॥

Monday, July 12, 2010

मेरा बचपन


बचपन का ज़माना होता था ,खुशियों का खज़ाना होता था .
चाहत चाँद को पाने की ,दिल तितली का दीवाना होता था .
खबर न थी कुछ सुबह की ,न शामों का ठिकाना होता था ।

थक हार के आना स्कूल से ,पर खेलने भी जाना होता था .
दादी की कहानी होती थी ,परियों का फ़साना होता था .
बारिश में कागज की कश्ती थी ,हर मौसम सुहाना होता था ।

हर खेल में साथी होते थे ,हर रिश्ता निभाना होता था .
पापा की वो डांट पर मम्मी का मनाना होता था ॥

गम की जुबान न होती थी ,न ज़ख्मो का पैमाना होता था .
रोने की वजह न होती थी ,न हसने का बहाना होता था ॥
अब नहीं रही वो जिंदगी ,जैसे बचपन का ज़माना होता था ....

लूट सके तो लूट भारतीय रेल का नया फंडा

भारतीय रेल कहने को आम जन के लिए है लेकिन इस के बदलते स्वरुप आम जन को कितना रास आ रहें
और आम जनता को कितना पता है इसके बारें में वो भगवान ही जानता है .... लेकिन आम जनता की आँखों में धुल झोंक कें उनकी पसीने की कमाई को भारतीय रेल बड़ी हुशियारी से अपने जेब में भर रही है ॥
हम ने आज जाना किस तरह से लूटा है इन्होने हमे वो भी बड़े प्यार से ......... देखिये आप भी और सावधान हो जाएँ भारतीय रेल से ....


यह टिकिट है जो बुकिंग खिड़की से लिया है यात्रा की तारीख १८/७/१० ट्रेन नंबर ६२०९ अजमेर से मिरज तक का इसका किराया लगा है १११६/- रुपये ॥

आप को लगेगा की इसमे क्या है ? तो जरा निचे नज़र घुमाइए और देखिये ये है e- ticket उसी तारीख का , उसी जगह का

लेकिन इसमे किराया है ११०१/- रुपये ! इसका मतलब है की भारतीय रेल आप को फायदा दे रही है क्युकी आप उनकी बुकिंग विंडो पे नहीं गए उनके कर्मचारियों को तकलीफ देने !!इसी लिए १५/- का डिस्काउंट आप को... हमे ये बात कुछ हजम नहीं हुई की आखिर क्यों नेट से टिकिट निकलने वालो पे सरकार इतनी मेहरबान है ?
जबकि लाइन में लग कें अपना समय बर्बाद कर के पसीने में भीगते हुए हमने ये टिकिट बनाया और हम से ही सरकार ज्यादा पैसे वसूल कर रही है ?
आखिर क्यों? हमारी गलती क्या है ?
क्या भारतीय रेल में सफर कर रहें है यह हमारी गलती है ?
या हमे इन्टरनेट से टिकिट बनाना नहीं आता ये हमारी गलती है ?
जी नहीं !! ये ज्यादती है भारतीय रेल की ... किस तरह आम जनता को बेवकूफ बना कर के उनसे पैसे वसूलना है वो कोई भारतीय रेल से सीखे !!
काफी सर्च करने के बाद हमे पता चला की भारतीय रेल जो कहने को तो आम जन के लिए है लेकिन उसे टिकिट खिड़की से टिकिट निकलने वाले की कोई परवाह नहीं है ..... इसी लिए उन्होंने एक स्पेशल टेक्स लगाया है जिस को नाम दिया गया है Enhanced Reservation Fee
इस का मतलब है की यदि आप को मुंबई से अजमेर का टिकिट लेना है और आप ये टिकिट कोल्हापुर रेलवे स्टेशन से ले रहें है तो आप को भारतीय रेल को १५/- रुपये पेनेल्टी देनी पड़ेगी क्युकी ये आप की गलती है की आप ये टिकिट यहाँ से निकल रहें है और आप को e- ticket बनाना नहीं आता ॥
आप कह सकते है भारतीय रेल भी बालासाहब ठाकरे से प्रेरित हो गयी है जैसे वो पर प्रांतीयो से खफा है वैस ही भारतीय रेल भी यदि आप गंतव्य स्थान से टिकिट नहीं बना रहें तो आप से खफा है ॥
हम तो बस इतना ही कहेंगे की भारतीय रेल की नयी नीति यही है :-
लूट सके तो लूट और अंत काल पछतायेगा प्राण जायेंगे छुट !!

आप भी सावधान हो जाइए आगे से भारतीय रेल में सफर करने से पहले .....

Friday, July 9, 2010

अनजाना हमसफ़र


सब लोग तेरी ही तलाश में है .....
तू दूर है .....या तू पास में है ........?
तेरे आने से मेरी दुनिया बदल जायेगी
इतना तो बता दे तू कब आएगी... ?
अपने जमीं पे होने का कुछ अहसास तो दें .....
मुरझाये फूलों को फिर से खिलने की आस तो दें
तेरी कमी मुझे यूँ खल रही है ....
की ख़ुशी में भी गम की एक झलक मिल रही है॥
तुझे पाने की चाह में मंदिर- मस्जिद सब जगह हो आयें है
हाथ की लकीरों ने भी तेरे सपने दिखाए है .....
हमसफ़र तू है कहाँ ....कब तक में अकेला चलता रहूँ राहो पे ... ??
क्या हिचकी नहीं आती तुम्हे ..दिल से निकली मेरी आह़ो पे ?
तू मेरी जिन्दगी का आधा हिस्सा है ...अभी तक बस कहानी है किस्सा है
तेरी तस्वीर मुझ से बनती नहीं है न ही तुझे शब्दों में उतार पाया हूँ
पर महसूस किया है तुझे
बारिश कि बूंदों में और बागो के झूलों में
हर
उगते दिन और हर ढलती शाम के साथ....
जोड़ना चाहता हूँ में अब नाम तेरे नाम के साथ ..

Sunday, July 4, 2010

भारत बंद


तेल महंगा शक्कर महंगी दाल रोटी सब कुछ हो गया महंगा
लगाम लगे न सरकार से दिखा रही वो ठेंगा ॥
और विपक्ष ने अपनी ही राग लगायी है
बंद करो बंद करो भारत .....छाई महंगाई है
सुबह से हर न्यूज़ चेनल पर दिखा रहे है आज भारतबंद है
मुझे समझ नहीं आता यार भारत कोई कोलगेट है की उसका ढक्कन बंद कर दिया और वो बंद हो गया ?
और बंद में कोन सा दरवाजा बंद हो गया ?
क्या गरीब के घर आज भूखमरी नहीं आएगी ? क्या रोज कमा के खाने वालों को आज पेट की चिंता नहीं सताएगी ?
क्या एक माँ अपने भूख से बिलखते बच्चे का मुंह कर सकती है आज बंद ?
और बंद करने वाले जिस मकसद से बंद करा रहे है आज वो उसी महंगे तेल को ज्यदा जला रहे है॥
एक दिन में अरबो का नुकसान... लोगो को नहीं मिल रहा जरुरत का सामान
दोनों ही राजनितिक पार्टियाँ अपनी अपनी रोटियां सेंकने में लगी है
भारत की भोली जनता नेताओं के हाथों हमेशा ही ठगी है ॥
कुछ बंद करना ही है तो भ्रष्टचार बंद करो गरीब पे हो रहे अत्याचार बंद करो ॥
व्यर्थ बह रहा पानी बिजली इस को बंद करो ..........
गुजारिश है कुछ आप बदलो कुछ सरकार बदलें
समय काटना मुशिकल हो जाता है.....
सो ऐसे बंद कर के हमे तंग न करो ॥

Saturday, June 26, 2010

गरीब का दिन


आज सुबह अख़बार पढ़ा तो पता चला की आज गरीबों का दिन है
में सोचा गरीबों का तो हर दिन मुश्किल से कटता है
उन्हें कहाँ कुछ फर्क पड़ता है.....की अख़बार में क्या छपता है ॥
और अख़बार पड़ने वालों को भी फूटपाथ पे रहने वालों की कहाँ पड़ी है ?
उनकी नज़रें तो फूटबाल के पन्ने पे ही गढ़ी है ॥
और गरीबों की इस हालत के जिम्मेदार वो सफ़ेद पोश
अपने कुर्ते में आई सलवटों को सही करने में लगे है
एयर कंडीशन कारों में बैठ बिसलेरी पानी पिने वालों को
कहाँ फर्क पड़ता है की देश में भूख से रोजाना कितने मर रहें हैं ?
और गरीब को कहाँ अपना जन्मदिन ही याद रहता है ?
जो वों अपने जख्मों पे नमक छिड़कते इस दिन को भी याद करेगा ?
गरीब कहाँ अपनी गरीबी को याद करना चाहता है
ये तो विदेशी संस्कारो वाले भारतीय है
जिन्हें ऐसे दिन बनाने में ही मजा आता है ॥
इतनी सी गुजारिश है मेरी उन ज्यादा किताबी ज्ञान रखने वाले लोगो से
की गरीबों के लिए कोई दिन मत बनाओ
बनाना ही है कुछ ....तो गरीब के लिए अपने दिलों में जगह बनाओ ॥
और अपनी तिजोरियां भर रहे उन सेठ लोगो से निवेदन है
की भले आप अपनी पेटियां भरो
लेकिन कृपा कर के.....
हर दिन एक गरीब की दो वक़्त पेट की भूख को भी शांत करो ॥

Thursday, June 17, 2010

ऐसा होता तो .....


आज सोचा मैंने.....
काश की बादल मेरे इशारे समझ पातें ... तो सोचो कितने मजे आते....
में उन्हें अपने हिसाब से चलाता ...न कहीं कम न कहीं ज्यादा बरसाता ॥
में प्यासी धरती की.... बंजर खेतों की प्यास बुझा देता ....
और कहीं बाढ़ न आने देता इस अमृत को यूँ व्यर्थ न जाने देता ॥
जब सूरज अपनी गर्मी से सब को जुल्साता
में आता और उसे अपने मैं छुपा लेता
ताकी उस गरीब मजदूर को दो पल चैन की नींद आती ....
उसे धरती की तपन नहीं सताती ॥
जब दो प्यार करने वाले रूठे होते ... उनके रिश्ते किसी मोड़ पे छूटे होते
में मौसम को इतना सुहाना कर देता.. उन दो दिलो को फिर से इक दूजे का दीवाना कर देता ॥
काश की बादल मेरें इशारे समझ पाते ...
तो किसानों के चेहरे यूँ न मुरझाते ...
में उनके खेतों में फिर से सोना बरसाता ..... ये देश फिर से ''सोने की चिड़िया'' कहलाता ॥
में किसी प्राणी को भूखे नहीं मरने देता ... किसी किसान को खुदखुशी न करने देता ॥
हे बादलों इस बार हमारे इशारे से चलों.... हमारे अरमानो को और न छलों ॥

Sunday, June 13, 2010

अजन्मी कन्या


कन्या भ्रूण हत्या एक ऐसा अपराध है जो मानवीयता के साथ जुदा है,कैसे माँ बाप अपने ही अंश का खून करते हैं,भले ही सरकार ने इस पर रोक लगाने के प्रयास किये हैं.पर कोई फायदा हुआ नहीं है,पहले जो काम खुले आम होता था अब चोरी छिपे होने लगा है,,

कैसा दिल है ये माँ का जो अपने ही बच्चे का खून करने पर उतारू हो जाता है

एक ऐसी ही बच्ची की पुकार...


मुझे मत मारो मैं तुम्हारा अंश हूँ माँ,

जैसे तुम हो बेटी,मैं भी तो वैसे हूँ ना।

मुझे जीना है,एक बार इस दुनिया में आना है माँ,

अपनी गोद में फिर तुम मुझे सुलाओगी ना।

इस परिवार का हिस्सा मुझे बनना है माँ,

पापा की लाडली भी तो मैं बनूँगी ना।

तुम जो कहोगी वो काम मैं करुँगी माँ,

इससे तुम्हे भी तो थोड़ी राहत मिलेगी ना।

कुछ बनना है मुझे कुछ कर दिखाना है माँ,

फिर शान से तुम कहना मेरी बेटी है ना।

तुम क्यों चिंता करती हो मेरी पढाई की शादी की माँ,

हर बच्चा इस दुनिया में अपनी किस्मत लाता है ना।

मुझे बस तुम्हारी ममता की छाँव चाहिए है माँ,

मुझे मत मारो मैं तुम्हारा अंश हूँ माँ...


अगर इस प्रयास से एक भी माँ का दिल पिघल गया तो ये प्रयास सार्थक होगा..


Monday, May 31, 2010

तेरा ख्याल


मेरे आंसू की कीमत लगाते हैं वो ....
जिन के होंटो पे हमने हसीं... दि थी कभी ॥
मुझ में समां के मुझ से जुदा होना चाहते है वो .....
जिन्होंने आने पे दस्तक भी दि न कभी ॥
वो बदलें इतनी जल्दी अपनी बातों से ....
इतनी जल्दी तो मौसम भी बदलते नही ॥
मैंने उन को कहा कुछ सब्र तो करो
मेरे अहसासों की कुछ कद्र तो करो ...
लेकिन वो तोड़ गए मुझ से रिश्ते सभी
अब कोई टूटे हुए को न तोड़े अभी ॥
इस तरह उसने लूटा मेरे जज्बातों को
मेरे आसूओं को कह गए बरसात वो
इस कद्र मिलें गम ख्यालात मैं ....
के अब तो मुस्कान भी चेहरे पे टिकती नहीं ॥
तेरा ख्याल दिल से जाता नहीं ॥ पर अब तू याद भी हम को आता नहीं
बस अश्कों को शब्दों में पिरोते है ..और नया सा कुछ लिख देते है यहीं ॥





Friday, May 28, 2010

अजीब रिश्ते


पैसो के आगे क्यो झुकते है रिश्ते

दर्द ही दर्द मेरी किस्मत में क्यो लिखते है रिश्ते !

इतने मतलबी हो गए है अपनी दुनिया में वो की

अब तो जरूरत पर भी कंहा दिखते है रिश्ते !!

खून के रिश्ते नाम के रिश्ते

चहरे पर हँसी लाये कलियों की तरह दिल के बाग़ में कंहा खिलते है रिश्ते !

गमो की आहट से ही अब क्यो हिलते है रिश्ते !

हमें अपना हिस्सा बना ले हमे अपनी साँसों में बसा ले

रोते हुई आँखों को हँसा दे खुशियों का अम्बार लगा दे

मंजिल तक साथ चले ऐसे कंहा अब मिलते है रिश्ते !!

Sunday, May 23, 2010

पड़ाव


उम्र का एक और पड़ाव आज पार कर चुके है
किसी हमसफ़र के इंतज़ार मे हम अब रुके है ॥
जिन्दगी का आधा सफ़र तय कर लिया सा लगता है
क्या पाया क्या खोया इसका हिसाब भी चहरे पे साफ़ दिखता है
हमने अपने आप को नोट छापने की मशीन नहीं बनाया
जहाँ तक हो सका किसी का दिल नहीं दुखाया ॥
बुरा लोगता है जब लोग कहते है तुमने किया क्या है
अब कागज़ के नोटों मे विश्वास रखने वालो को
किसी के चहरे पे आई मुस्कान का मोल कैसे बताये ?
किसी के गम बाँट लेने से, मिला सुकून को कैसे समझाए ?
खेर अब लोगो की परवाह करता भी कोंन है ?
अब तो बोलने वालो से ज्यादा डर उनसे लगता है जो मोन(चुप ) है
मुझ से बस कभी किसी का दिल न टूटे ॥ कोई अपना मुझ से कभी न रूठे
मुझे कभी कृत्रिम चीजों से लगाव न हो और अपनों के मन मे मेरे लिए कड़वाहट न हो ॥
गम छिपा के लोगो को हँसाते रहे .... ख़ुशी के नगमे हर दिन गाते रहे ॥
आँसू को पलकों तले दबा के मुस्कराते रहे और इसी तरह जिन्दगी बिताते रहे
जिन्दगी के हर मोड़ पे हमे आप का साथ चाहिए
फिर एक नयी शाम इंतज़ार कर रही है ॥ आप आइये साथ निभाइए ॥

Tuesday, May 18, 2010

चुनाव प्रचार


हर तरफ चुनाव का जोर है,
जहा देखो वहां प्रचार का शोर है,
दम ख़म लगा कर जुटे हैं नेता,
हर कोई दुसरे को साबित करता चोर है।
चुनाव का भी अपना ही एक खुमार है,
हानियाँ तो बहुत पर फायदे भी बेशुमार हैं,
जनता आराम से जी लेती है कुछ दिन,
और नेताओं पर चढ़ता बुखार है।
बिजली पानी की तंगी से जूझ रहे लोगो को
सब सुविधाए देने में लगे हैं,
हलकी हवा से टूटने वाले तारो पर आजकल,
आंधी तूफ़ान भी बेअसर होने लगे हैं।
बुजुर्गो का हाल पूछने नहीं गया कोई अबतक,
आजकल उनकी खातिरदारी में लगे हैं,
किसी से सीधे मुह बात न करने वाले लोग भी,
हाथ क्या पैर तक पकड़ने में लगे हैं.
कभी दो पैसे का भी दान नहीं दिया जिन्होंने,
वो आजकल दिन रात खिलाने पिलाने में लगे हैं,
गरीबों की हो गयी है चाँदी,
और पीने वालो को तो ये दिन दिवाली की तरह लगने लगे हैं।
पर
चुनावो के बाद फिर से वोही हाल होने वाला है,
जो जीत गया वो जनता को लूटने वाला है,
जितना पैसा खर्च किया चुनाव प्रचार पे,
उसे जनता से ब्याज सहित वसूलने वाला है॥

Tuesday, May 11, 2010

mera gaanv mera sahar


मेरे गाँव में घर की छत पे आज भी मोर आते है
मेरे शहर में मुझे चिडिया भी देखने नही मिलती ॥

मेरे गाँव में लोगो के बीच आज भी वो ही भाईचारा है
मेरे शहर में भाई की भाई से ही नही बनती ॥

मेरे गाँव में सुख दुःख में सब साथ है
मेरे शहर में परछाई भी साथ नही दिखती ॥

मेरे गाँव में आज भी पक्की सड़क नही है
मेरे शहर में सड़के है पर मंजिल नही मिलती ॥

मेरे गाँव में आज भी सब नीम के पेड़ तले बतियाते है
मेरे शहर में लोगो को फ़ोन से फुर्सत नही मिलती ॥

मेरे गाँव में बच्चे आज भी माँ के आँचल में पलते है
मेरे शहर में अब माँ का आँचल ही देखने को नही मिलते है ॥

मेरे गाँव में सावन में आज भी झूले पड़ते है
मेरे शाहर में पार्क में भी झूले देखने को नही मिलते ॥

मेरे गाँव में आज भी हर तीज त्यौहार के लिए अपने गीत है
मेरे शहर में बद से बदतर होता कान फोडू संगीत है ॥

मेरे गाँव में कुछ नही है फिर भी लोग खुश है
मेरे शहर में सब कुछ है ..फिर भी चेहरे पे वो खुशी नही दिखती ॥

मेरे गाँव में अमन है सुख है चैन है
मेरे शहर में हर मुस्कराहट के पीछे भीगे हुए नैन है ॥

Friday, May 7, 2010

happy mothers day.


कही पढ़ा था मैंने ...
सख्त रास्तों में भी आसान सफ़र लगता है,
ये मुझे मेरी माँ की दुआओं का असर लगता है,
एक मुद्दत से मेरी माँ सोयी नहीं,
जब मैंने कहा माँ मुझे डर लगता है....
यो तो माँ के बारे में जितना भी लिख लो बोल लो कम ही है...माँ की गोद, उसका प्यार-दुलार, उसकी डांट-फटकार ..............मुझे मेरी माँ के साथ साथ मेरी बड़ी माँ का भी उतना ही प्यार मिला.... कुछ पंक्तियाँ मेरी बड़ी माँ के लिए जो आज हमारे बीच में नहीं हैं पर वो जहाँ कहीं भी हैं हमे देख रही हैं और उनका आशीर्वाद हमेशा हमारे साथ है॥
आज ओढा जो मैंने दुप्पट्टा तेरा,माई,,
तेरी खुश्बो मेरी साँसों में उतर आई,
छुआ जो तेरी चूड़ियों को मैंने,
लगा जैसे छु ली हो मैंने तेरी कलाई,
हर चीज़ तेरी तडपाती है माँ,
मुझे याद तेरी बहुत आती है माँ।
याद आता है तेरा सुबह-२ जगाना,
वो सहलाना माथा,वो सर पे हाथ फिराना,
वो कहना की बेटा उठो नहा लो,पूजा कर लो,
वो तेरा मोहब्बत से देख मुस्कुराना,
हर सुबह मुझको रुला जाती है माँ,
मुझे याद तेरी बहुत आती है माँ।
ये आंसू मेरे थमते नहीं हैं क्यूँ,
तू क्या गयी लुट गया मेरे दिल का सुकून,
ये तो मर्जी है मालिक की,
जानती हु फिर भी बेकल सी मैं रहूँ,
तेरी तस्वीर आँखों से नहीं जाती है माँ,
मुझे याद तेरी बहुत आती है माँ।
इतनी जल्दी तू मुझको छोड़ गयी क्यूँ,
मुझ से ये नाता तोड़ गयी क्यूँ,
हर लम्हा तेरे बिन एक इम्तिहान है,
किस बात से खफा हो मुह मोड़ गयी क्यूँ,
आँखों में हर रात गुजर जाती है माँ,
मुझे याद तेरी बहुत आती है माँ...
मुझे याद तेरी बहुत आती है माँ...
happy mothers to all gr8 moms..

Thursday, April 29, 2010

इंटरनेट कहीं बच्चों को ले न डूबे...!

आज के समय जब पूरी दुनिया सिमट कर हमारी उंगलियों पर आ गयी है और यह सब संभव हो पाया है केवल सूचना प्रौधोगिकी के कारण और इस सूचना प्रौधोगिकी का सारा आधार है इंटरनेट । दुनिया में सबसे ज्यादा इंटरनेट प्रयोग करने वालों की संख्या चीन में है और भारत जैसे देश मे भी लगभग 20 करोड़ लोग वर्तमान समय में इंटरनेट का प्रयोग कर रहे है और आने वाले दिनों में और तेजी से बढ़ेगी क्योंकि दिन प्रतिदिन इसके प्रयोग करने वालों की संख्या बढ़ रही है!!
इन्टरनेट जिस के फायदे बहुत है तो इसके खतरे भी बहुत है ...
आज इंटरनेट पर दुनिया भर की इतनी अधिक जानकारियां उपलब्ध है कि उनका मानव भलाई के लिए प्रयोग कम और विनाश के लिए प्रयोग कुछ ज्यादा ही हुआ है जैसे कि हम देख सकते कि आज इंटरनेट पर बम बनाने के तरीके आसानी से उपलब्ध है और चाइल्ड़ पोनोग्राफी जैसी सामग्री जिस का बेजा इस्तेमाल आज की पीढ़ी कर रही है लेकिन अब जो खुलासे मै करने वाला हूँ अपने इस लेख के माध्यम से शायद उसको पढ़ के हर माता पिता सोचने पे मजबूर हो जाये .. और पानी सर के ऊपर से गुजरे उससे पहले इसको रोकने के लिए हमारी सरकार कुछ कड़े कदम उठाये !!

भारत में आज कल हर युवा इन्टरनेट का प्रयोग करता हे .. अधिकतर घरो मै इन्टरनेट की सुविधा ले रखी हे बच्चे अपने पेरेंट्स को कहते है की उन्हें इन्टरनेट जरुरी है और वो दिन भर उसका इस्तेमाल करते है .. माता पिता को लगता है की बच्चा पढ़ रहा है लेकिन शयद वो नहीं जानते की बच्चा इन्टरनेट के माध्यम से घर मै बैठे हुए ही किस नयी दुनिया मै सफ़र कर रहा है , किन नए लोगो से मिल रहा है और जाने क्या क्या नयी बाते सिख रहा है !!
इन्टनेट की सोशल वेब साइट्स जैसे ऑरकुट , याहू फेसबुक बच्चो के बीच मै बहुत ही फेमस है वो दिन मै घंटो इन्ही पे बिता देते है



मै इन्टरनेट का रेगुलर यूज करता हूँ मेरा खुद का साइबर कैफे है और जितनी भी सोशल साइट्स है करीब करीब सब मैंने use की है ऑरकुट फेसबुक और याहू इंडिया की फेमस सोशल साइट्स है.. दिखने मै सब कुछ सिम्पल सा लगता है लेकिन जब आप इन का उसे करोगे तो आप को पता चलेगा की हकीकत कुछ और है और ये साइट्स आज की युवा पीढ़ी को सेक्स ज्ञान के आलावा कुछ और नहीं बाँट रही है

मैंने इस पे काफी सर्च किया है और याहू इस के चाट रूम मै खाली सेक्स पे बात होती है इन चाट रूम मै आप को १५ साल के छोटे बच्चे से लेकर के ४५ साल के शादी शुदा लोग मिल जायेंगे जो विर्चुली सेक्स करते है ओन्न वेब केम यदि आप के पास वेब केम है तो आप अपने इशारे पे सामने वाले से कुछ भी करा सकते हो कुछ भी मतलब हर तरह की अश्लील हरकते वो भी लाइव

इन चाट रूम मै वाइफ स्वेपिंग , कॉल गर्ल , कॉल बॉय आसानी से मिल जायेंगे और १८ से २८ साल के लड़के लड़कियां आपस मै सेक्स करने के लिए हमेशा तयार मिलेंगे
और यदि आप एक ही शहर के है और किसमत साथ दे तो शायद आप रियल लाइफ तक अपनी विर्चुअल लाइफ को ले जाए , मतलब एक आसन सा जरिया सेक्स मार्केटिंग का !!
आज हर घर मै ये सोशल साइट्स काम मै ली जाती है माता पिता को लगता है की बच्चे पढाई के लिए इस्तेमाल कर रहे है लेकिन शायद उन्हें नहीं पता की उनके बच्चे किस राह की तरफ बढ़ रहे है अनजाने मै ही !!

विजय पाटनी
नसीराबाद

Tuesday, April 20, 2010

बारिश


सूरज की बाद्लों से आँख मिचोली चल रही है ..
तपती धरती को बारिश की ठंढी फुहारे मिल रही है !!

सब खुश है चारो और ...बस एक हमे छोड़ कर
हमे तो इस मोसम में बस आप की कमी खल रही है !!
तपती धरती को बारिश की ठंढी फुहारे मिल रही है !!!

आप आयेंगे नही आप को ख्याल ही कहा है हमारी खुशी का ॥
आप की और भी कुछ बादल कर दे हवा से हमारी बात चल रही है !!
तपती धरती को बारिश की ठंढी फुहारे मिल रही है !!!

बारिश की बूंन्दे कुछ इस तरह से गिरी है तन पे ..
जैसे आप ने छुहा हो हमे प्यार से .... आ जाओ अब तो ये रात भी ढल रही है !!
तपती धरती को बारिश की ठंढी फुहारे मिल रही है !!!

इसे आप शिकायत मत समझना ..हम नाराज़ नही है आप से ..
बस ये तो हमारी तमन्नाये है जो मचल रही है !!
तपती धरती को बारिश की ठंढी फुहारे मिल रही hai !!!

Saturday, April 17, 2010

दादी आ रही है ......



सुधा collage जाने को तैयार हो ही रही थी ... की तभी फ़ोन की रिंग बजी
फ़ोन सुधा की कजिन का था ...उस ने कहा दादी आज वहा आ रही है तुम स्टेशन चल जाना लेने को ॥
ये सुनते ही सुधा की आँखों के सामने फिर से वो पुराने कड़वी यादे घुमने लगी .......
भारी मन से collage को निकली रस्ते में उस की सहेली उमा मिल गई
उमा : क्या हुआ सुधा बहुत परेशान लग रही हो ?
सुधा : हा यार दादी आ रही है आज
उमा : ओह राम जी दादी ( उमा को भी दादी की आदतों की जान कारी थी )
(सुधा की दादी वैसे तो बहुत धर्मात्मा है दिन भर पूजा पाठ में लगी रहती है....दान धरम में आगे रहती है
अपना काम भी ख़ुद ही करती है वो अपने कपड़े धोने से लेकर खाना बनाना तक !!उम्र के ६५ बसंत पार हो चुके है पर आज भी बच्चो जैसी फुर्ती है उन में !!)
बस दादी चुप नही रह सकती वो जरूर सब पर अपने राय थोपेगी ... सब को अपने हिसाब से चलने को बोलेगी
हर बात में हर इन्सान में कमी निकलना उन की आदत में है )
सुधा : उमा हाँ यार दादी आज आ रही है ,अब फिर से रोज की चिक चिक चालु हो जायेगी माँ और दादी के बीच !!

फिर से पुरे मोहल्ले को पता चलेगा की इस घर में जानवर ही रहते है दिन भर शोर सुनाई देगा सब को हमारे घर से
!!

uma : दादी को रहने को खाने पिने को कोई कमी नही है भगवन की दया से बड़ा परिवार है सब बच्चो के
बड़े बड़े मकान है ...दादी चाहे तो सब को आर्डर दे के अपना काम करा सकती है , लेकिन पता नही क्यो वो ख़ुद काम करना चाहती है अबभी?? पता नही उन को अब भी क्यो मोह माया से लगाव है इतना ?? क्यो वो धरम धयान में मन नही लगाती पुरा !!!??

क्यो हर जगह अपने बहु बेटो का मजाक बनाने में लगी रहती है .??.. जब की सब बेटे बहु इतना धयान रखते है उन का !!

सुधा : चुप है उस को समझ नही आ रहा क्या जवाब दे वो इन सवालो का ??
वो ख़ुद ये जाना चाहती है की क्यो बुजुर्ग लोग उम्र के इस पड़ाव पे आकर बच्चो से दूर हो जाते है ?? क्यो वो अपना सव्भाव नही बदलते ? वो क्यो चाहते है की लोग उन के हिसाब से चले जो की मुमकिन नही है नई पीडी के लिए॥

ये कहानी है उन सब की जिन घरो में बड़े बुजुर्ग आज भी अपना रौब चलाते है बच्चो पे .... अपने बहु बेटो में कमी निकलना ज़माने भर में उन की बुराई करना आदत बन गई है , जिन को ऐसा लगता है की अगर हम ने अपना रौब छोड़ा तो हमारा बुढापा ख़राब हो जायेगा ?

में यह नही कहता की बुजुर्ग है तो उन को कोने में पटक दो एक ...और भूल जाओ नही !!! लेकिन उन को ये समझना जरूरी है की अब समय आ गया है की हम किसी को अपने हिसाब से न चलाये बल्कि कुछ परिवर्तन
अपने में लाने की कोशिश करे ....सीधा खड़ा हुआ पेड़ जड़ से उखड जाता है लेकिन अगर वो फल के बोज से झुका हो तो नही गिरता !! कभी कभी झुकने में भी मान बढता है .....

अपने विचार देते रहे .....

Monday, April 12, 2010

जिन्दगी की किताब


मेरी जिन्दगी की किताब में कुछ पन्ने ऐसे जुड़े है ....जिन को मेरे अपने पढ़ के भी नही समझ पाये !!

और गेरों ने दूर से देख के ही जिन को समझ लिया ....

कोन कहता है खून के रिश्ते दिल के सब से ज्यादा करीब होते है ....

इस दुनिया में जिन के दोस्त नही है आप से ......वो लोग सब से ज्यादा गरीब होते है !!

आप ने उन पन्नो को पढ़ा ही नही है ..समझा है और दिल में उतारा है ...

और अपनी भावनाए भी जोड़ी है उन पन्नो के साथ ...

वो पन्ने जिन को देखना भी अपनों का नही गवारा है ॥

आप ने अपने प्रेम से उन को सवांरा है !!

वो पन्ने कूड़ा या रद्दी बन जाते अगर आप उन को नही अपनाते ॥

आप ने उन को संभाला है बचाया है दीमक लगने से और आंधियो में भी उन्हें नही उड़ने दिया

एक एक पन्ने को प्यार से जोड़ा है .... एक किताब बना दी है उनकी

ऐसी किताब जो जिन हाथो में जायेगी ...तारीफ़ ही पाएगी

दुःख तो है ये की जिस ने इन पन्नो की किताब बनाई है .....उस का नाम तक नही है इस पे कही !!!

Monday, April 5, 2010

इज़हार-इ-इश्क..

ये कविता खास उन लोगो क लिए जो किसी से प्यार करते हैं और वो भी एकतरफा॥
या फिर वो जिससे प्यार करते हैं उन्होंने अपना इज़हार-इ-इश्क नहीं किया है॥

होंठो पे ना ,दिल में हाँ,
ये तो प्यार का दस्तूर है।
लाख छिपाया मगर आँखे कर गयी सच बयां,
तो इस में हमारा क्या कसूर है॥
एक वो हैं की जान कर भी अनजान बने हैं,
गुरूर है खुद पे या प्यार नहीं हमसे
जाने किस बात पे तने हैं॥
शायद गलती हमारी ही है,
जो बिन सोचे समझे प्यार किया
लायक नहीं हैं हम उनके,
जिन्हें ये दिल दिया॥
पर एहसास तो हमे भी हुआ था ,
की वो पसंद करते हैं हमे
ग़लतफहमी थी या वो सताना चाहते हैं हमे॥
ये कैसी कशमकश है,ये कैसा प्यार है,
कह दो अगर कुछ दिल में है।
हमे तो बस सुनने का इंतज़ार है॥

Tuesday, March 30, 2010

मेरे पापा

 कल अपने पापा से मेरी बात हो रही थी...अचानक ही कहने लगे बेटी तुम्हे देखे कितने दिन हो गये...गर्मी की छुट्टियाँ आते ही मायेके जाने की तयारी शुरू हो जाती है लेकिन इस बार शायद जाना ना हो पाए...पापा हमेशा कहते है बेटियों को जन्म दो, इतने प्यार से उन्हें पालो पोसो बड़ा करो और फिर एक दिन उन्हें देखने के लिए भी तरस जाओ...चिडियों सी चहचहाती पूरा घर गुलजार करती ये बेटियाँ एक दिन सब सूना कर परदेश चली जाती है...ये उनकी एक बड़ी शिकायत है इस समाज से...उनकी इन्ही सारी बातो को याद करते करते कल कुछ पंक्तियाँ लिख गयी....

पापा आज आपकी बहुत याद आ रही है...
वो पिछला गुजरा जमाना, वो मेरा बचपन सुहाना...
हमारा बारिश में भीगना, फिर माँ की डांट से बचाने के लिए आपका दुकान में छुपा लेना...
साथ बिठाकर खाना खिलाना, मेरे सारे गणित करवाना...
मेरे रिजल्ट आने पर खुद से ज्यादा खुश आपको देखा है मैंने...
दिवाली के पठाखे लाना, छट के घाट घुमाना...
होली में खुद ठंडाई बनाना और दशहरे में स्कूटर से पूरा शहर घुमाना...
जिंदगी जीना तो आपसे ही सीखा है मैंने...
तराने गुनगुना कर माँ को छेड़ना, फिर माँ का मुस्का कर पलट जवाब देना...
इस प्यारा भरे रिश्ते की छाँव में हम कब बड़े हो गये पता भी नहीं चला...
मुझे याद है जब मैंने पहली बार खाना बनाया था...
और आपने उस तेज़ नमक की दाल को भी कितने चाव से खाया था...
फेरो के समय घूँघट की आड़ से धीरे से देखा था मैंने आपको...
नम आँखे और हलकी मुस्कान लिए चुप-चाप बैठे थे आप...
अपनी रानी बिटिया किसी और को सौपते हुए आपका हाथ भी कांपा था...
याद है मुझे कितना रोये थे आप कलेजे से लगा अपनी बेटी को...
जीवन की सफलता असफलता का ज्यादा ज्ञान नहीं मुझे...
लेकिन आपकी बेटी बनकर जन्म लेना ही मेरा जीवन की सार्थकता है...

Saturday, March 20, 2010

अनजाना रिश्ता..


कुछ तो रिश्ता है उनसे जो ये दिल उन्हें अपना मानता है ,
क्या है,क्यों है,इसका जवाब तो बस रब्ब ही जानता है.
हर घडी जेहेन में बस ख्याल है उनका,
देख ले झलक एक पल तो दिल को सुकून मिल जाता है।
न जाने कैसी कशिश है उनकी आवाज़ में,
वो बात न करे तो हमसे तो सारा जहाँ चुप-चाप सा नजर आता है॥

यकीन नहीं है खुद पे और अपनी किस्मत पे भी,
इसलिए उनके खफा होने का ख्याल दिल को रुलाता है।
अनजान हैं वो इन सब से ,कुछ नहीं जानते,
कि कोई अपनी आंखों में उन के सपने सजाता है॥

कहते हैं खोना-पाना दुनिया का दस्तूर है,
पाना नहीं चाहते उन्हें हम,फिर खोने से दिल डरता है।
यूं ही हँसते मुस्कुराते रहे वो ज़िन्दगी भर,
उनके हिस्से के आंसू भी मुझे मिले,बस येही फरियाद अब दिल करता है॥

Thursday, March 11, 2010

मेरे देश की फिजा


मेरे देश की फिजा बदली बदली सी है आज कल

लगता है ये भी पश्चिम से हो कर के आई है

हमारे साधू महात्मा , इंसान भी नहीं रहे ,

भगवान दिखने वाली आँखों में … वासना छाई है !!

हम कितने भोले है किसी को भी भगवान बना देते है ,

आडम्बर और पाखंड की ये हमने कोनसी दुनिया बसाई है ?

लगता है हवा पश्चिम से हो कर के आई है !!

महिलाओ को आरक्षण दिलाने की होड़ में सारे पुरुष लग गए ॥

अकेली महिला फिर भी पुरुषो की हवस से कहा बच पायी है !!

सर पे पल्लू ढकने वाली भारतीय महिला के तन ढकने को पूरे कपडे नहीं है ,

शर्म हया आँखों से गायब है .. ये संस्कृति हमने कहा से अपनाई है ?

लगता है हवा भी पश्चिम से हो कर के आई है !!

दूध की नदियाँ बहाने वाले भारतवासियों के तन में अब नकली है खून भी .

पिज्जा बर्गर खाने वाले मस्त है ..दो वक़्त रोटी खाने वालो के लिए कमर तोड़ महंगाई है

सोने की चिड़िया तो उड़ गयी कब से ही.... इस आधुनिकता ने तो भारत माँ की रातो की नींद भी उड़ाई है ॥

मेरे देश की फिजा बदली बदली सी है आज कल

लगता है ये भी पश्चिम से हो कर के आई है॥

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