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Tuesday, September 16, 2014

यूँही तेरे ख्यालों में :-


तेरी चाहतें छोटी सी है 
पर तेरे बंधन बहुत बड़े 
तू जिनके बारे में सोचे 
वो देखेंगे तमाशा दूर खड़े 

चल खोल मन का पिंजरा 
थाम हाथ साथ में उड़ चलें 
ये मौका अभी मिला है हमें 
फिर शायद राह मिले न मिले

तेरे लब पर ख़ुशी के लिए
हर दाग को सह लूंगा मैं
तूने सोच भी कैसे लिया
तेरे बैगेर रह लूंगा मैं

तुझ से मिलकर आधा मैं
पूरा हो जाता हूँ
तेरी मुस्कराती आँखे देख
मैं चैन से सो जाता हूँ

जब तू और जी सकता है फिर काहे को तू मरे
आ हम तुम मिल कर चाहतों का व्यपार करें 

Friday, July 4, 2014

"हैप्पी मानसून"




एक हल्का सा बादल देख कर तोड़ लेना है 
और बना देने है उससे, तुम्हारी कानों के झुमके 
इक बारिश की लड़ी तुम्हारे पैरों में पहनानी है 
और अंगुली में टूटे हुए बादल का छल्ला !
हरे पत्तों पर पड़ी बूंदों को उठा कर तुम्हारी कलाई में पहना देनी है हरी चूड़ियाँ 
इक काले बादल को स्पर्श कर तुम्हारे नैनों का श्रृंगार करना है 
सूरज के आईने में बरसती बूंदों से तुम्हारी साडी में सतरंगी रंग भरना है 

तुम्हे सजाना है एक एक बादल को चुन 
और ऐसे बनाना है अपना "हैप्पी मानसून"

Monday, June 30, 2014

बीती यादें बचपन की.....


काश फिर कोई जादू हो जाये
बीते दिन बचपन के , फिर लौट आये

 वो हरफनमौला जिंदगी, बेफिक्री भरपूर
दुनिया की दुनियादारी से कौसो मिल दूर

फिर कोई प्यार खिलौना , मेरी आँखों को भाये
बीते दिन बचपन के , फिर लौट आये !!


के अब भी ख्वाबों में मेरे बचपन खिलखिलाता है
रोज किसी बहाने से मुझे अपने पास बुलाता है
फिर ये जिंदगी मासूम मुस्कराहट में समा जाए
बीते दिन बचपन के , फिर लौट आये  !

वो बचपन जिसकी दुनिया में...
हर गलती माफ़ हो जाती थी...
बारिश  में कागज़ की कश्ती...
भी उपलब्धि कहलाती थी...
वो तैरती कश्ती वापस से मुझको...
बचपन की सैर कराये
बीते दिन बचपन के , फिर लौट आये !!


नकली ख़ुशी और जाली हँसी  अब और चलायी नहीं जाती
खुशियों में ग़मों की परछाई मिलाई नहीं जाती
फिर गीली मिटटी से कच्चे घर बनाये
बीते दिन बचपन के , फिर लौट आये !

Sunday, May 25, 2014

Pyar-ek saza

प्यार के एहसास से , उसके हर जज़्बात से नफरत है 
इश्क़ के गवाह हर इक गुलाब से नफरत है 
साथ जो बिताये तेरे हर इक पल की कसम 
अब उस वक़्त का ख्याल से नफरत है 
बेरुखी को तेरी अदा मान मोहब्बत की हमने 
खुद को सज़ा देने के इस अंदाज़ से नफरत है 
दर्द-ए-इश्क़ की इन्तहा ही है शायद कि 
आज हमे अपने आप से नफरत है.। 

Thursday, May 22, 2014

बस यूँही जन्म लेने से एक दिन पहले :)



न मंजिल का पता है, न रास्तों की खबर है ;)
थकी मांदी  सी रात है , मन मौजी सहर है 
मैं जिस से भी मिला , अपना बन कर मिला 
फिर भी जाने क्यों अब तक अंजाना ये शहर है 
न मंजिल का पता है, न रास्तों की खबर है ;)

मैं जिन से दिल से जुड़ा , उनसे कभी न रूठा 
और जिस से दिल से रूठा , फिर उससे कभी न जुड़ा 
फूलों वाला जो दरख्त दीखता है दूर से 
असल में वो काटों वाला "शजर" है 
न मंजिल का पता है, न रास्तों की खबर है ;)

पूरी है जिंदगी पर प्यार अभी भी बाकी है 
उस एक नशे को खोजता अब तक ये साकी है 
मुकम्मल है आईना  मेरा, कुछ चेहरों पर फिर भी नजर है 
न मंजिल का पता है, न रास्तों की खबर है ;)

मेरे बहीखाते को मत रखना तुम देर तक सवालों में 
दो आँखों का  सुकून  और चार लबों पर खुशियाँ 
बस यही  जोड़ा है, गुजरे हुए सालों में। .. :)
जब वो रोती आँखों से मुस्करा देते है, हमें याद कर 
तभी झूमती गाती  अपनी भी सहर है 
न मंजिल का पता है, न रास्तों की खबर है ;)

और चलते चलते 
के अब तक रखा है , आगे भी साथ रखना 
अपनी हर दुआ में , मुझे याद रखना 
खुश हूँ अब तक क्यूंकि आप की दुआओं में बड़ा असर है 
न मंजिल का पता है, न रास्तों की खबर है ;)



Wednesday, January 15, 2014

उसकी डायरी के पन्ने....!

उसकी डायरी के पन्ने ...

मुझे आईना  दिखा रहे थे
मैं कितना खुदगर्ज हूँ ये बता रहे थे
उसके हर शब्द में खालिस सच्चाई थी
मेरे संग भी उसके जीवन में तन्हाई थी ?
उसके शब्द मुझ पर अपना हक़ जाता रहे थे
मैं कितना खुदगर्ज हूँ ये बता रहे थे :)

उसकी डायरी के पन्ने। . :)

तूफ़ान सा उठ रहा था सर्दी कि उस  रात में
मैं डूब चूका था सर तक, कागज पर फैले जज्बात में
उसके शब्द मेरे दामन पर  कालिख लगा रहे थे
पर मेरे चेहरे पर पड़ी धुल हटा रहे थे
मैं कितना खुदगर्ज हूँ ये बता रहे थे :)

उसकी डायरी के पन्ने ..

हम खूबसूरत धोखों में अब तक यूँ ही उलझते रहे
जमीर बेच कर खुद को जमीदार समझते रहे
आज उसके शब्द , सच्चे प्यार का मोल समझा रहे थे
मैं कितना खुदगर्ज हूँ,  ये बता रहे थे :)

.

"सच्ची मोहब्ब्त को समझा है
इन  पन्नों से गुजर के हमने। ...
रात भर मेरी आँखों से बरसे है
उसकी डायरी के पन्ने ".…  :)
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