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Saturday, June 26, 2010
गरीब का दिन
आज सुबह अख़बार पढ़ा तो पता चला की आज गरीबों का दिन है
में सोचा गरीबों का तो हर दिन मुश्किल से कटता है
उन्हें कहाँ कुछ फर्क पड़ता है.....की अख़बार में क्या छपता है ॥
और अख़बार पड़ने वालों को भी फूटपाथ पे रहने वालों की कहाँ पड़ी है ?
उनकी नज़रें तो फूटबाल के पन्ने पे ही गढ़ी है ॥
और गरीबों की इस हालत के जिम्मेदार वो सफ़ेद पोश
अपने कुर्ते में आई सलवटों को सही करने में लगे है
एयर कंडीशन कारों में बैठ बिसलेरी पानी पिने वालों को
कहाँ फर्क पड़ता है की देश में भूख से रोजाना कितने मर रहें हैं ?
और गरीब को कहाँ अपना जन्मदिन ही याद रहता है ?
जो वों अपने जख्मों पे नमक छिड़कते इस दिन को भी याद करेगा ?
गरीब कहाँ अपनी गरीबी को याद करना चाहता है
ये तो विदेशी संस्कारो वाले भारतीय है
जिन्हें ऐसे दिन बनाने में ही मजा आता है ॥
इतनी सी गुजारिश है मेरी उन ज्यादा किताबी ज्ञान रखने वाले लोगो से
की गरीबों के लिए कोई दिन मत बनाओ
बनाना ही है कुछ ....तो गरीब के लिए अपने दिलों में जगह बनाओ ॥
और अपनी तिजोरियां भर रहे उन सेठ लोगो से निवेदन है
की भले आप अपनी पेटियां भरो
लेकिन कृपा कर के.....
हर दिन एक गरीब की दो वक़्त पेट की भूख को भी शांत करो ॥
Thursday, June 17, 2010
ऐसा होता तो .....
आज सोचा मैंने.....
काश की बादल मेरे इशारे समझ पातें ... तो सोचो कितने मजे आते....
में उन्हें अपने हिसाब से चलाता ...न कहीं कम न कहीं ज्यादा बरसाता ॥
में प्यासी धरती की.... बंजर खेतों की प्यास बुझा देता ....
और कहीं बाढ़ न आने देता इस अमृत को यूँ व्यर्थ न जाने देता ॥
जब सूरज अपनी गर्मी से सब को जुल्साता
में आता और उसे अपने मैं छुपा लेता
ताकी उस गरीब मजदूर को दो पल चैन की नींद आती ....
उसे धरती की तपन नहीं सताती ॥
जब दो प्यार करने वाले रूठे होते ... उनके रिश्ते किसी मोड़ पे छूटे होते
में मौसम को इतना सुहाना कर देता.. उन दो दिलो को फिर से इक दूजे का दीवाना कर देता ॥
काश की बादल मेरें इशारे समझ पाते ...
तो किसानों के चेहरे यूँ न मुरझाते ...
में उनके खेतों में फिर से सोना बरसाता ..... ये देश फिर से ''सोने की चिड़िया'' कहलाता ॥
में किसी प्राणी को भूखे नहीं मरने देता ... किसी किसान को खुदखुशी न करने देता ॥
हे बादलों इस बार हमारे इशारे से चलों.... हमारे अरमानो को और न छलों ॥
Sunday, June 13, 2010
अजन्मी कन्या
कन्या भ्रूण हत्या एक ऐसा अपराध है जो मानवीयता के साथ जुदा है,कैसे माँ बाप अपने ही अंश का खून करते हैं,भले ही सरकार ने इस पर रोक लगाने के प्रयास किये हैं.पर कोई फायदा हुआ नहीं है,पहले जो काम खुले आम होता था अब चोरी छिपे होने लगा है,,
कैसा दिल है ये माँ का जो अपने ही बच्चे का खून करने पर उतारू हो जाता है
एक ऐसी ही बच्ची की पुकार...
मुझे मत मारो मैं तुम्हारा अंश हूँ माँ,
जैसे तुम हो बेटी,मैं भी तो वैसे हूँ ना।
मुझे जीना है,एक बार इस दुनिया में आना है माँ,
अपनी गोद में फिर तुम मुझे सुलाओगी ना।
इस परिवार का हिस्सा मुझे बनना है माँ,
पापा की लाडली भी तो मैं बनूँगी ना।
तुम जो कहोगी वो काम मैं करुँगी माँ,
इससे तुम्हे भी तो थोड़ी राहत मिलेगी ना।
कुछ बनना है मुझे कुछ कर दिखाना है माँ,
फिर शान से तुम कहना मेरी बेटी है ना।
तुम क्यों चिंता करती हो मेरी पढाई की शादी की माँ,
हर बच्चा इस दुनिया में अपनी किस्मत लाता है ना।
मुझे बस तुम्हारी ममता की छाँव चाहिए है माँ,
मुझे मत मारो मैं तुम्हारा अंश हूँ माँ...
अगर इस प्रयास से एक भी माँ का दिल पिघल गया तो ये प्रयास सार्थक होगा..
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