
मेरे देश की फिजा बदली बदली सी है आज कल
लगता है ये भी पश्चिम से हो कर के आई है
हमारे साधू महात्मा , इंसान भी नहीं रहे ,
भगवान दिखने वाली आँखों में … वासना छाई है !!
हम कितने भोले है किसी को भी भगवान बना देते है ,
आडम्बर और पाखंड की ये हमने कोनसी दुनिया बसाई है ?
लगता है हवा पश्चिम से हो कर के आई है !!
महिलाओ को आरक्षण दिलाने की होड़ में सारे पुरुष लग गए ॥
अकेली महिला फिर भी पुरुषो की हवस से कहा बच पायी है !!
सर पे पल्लू ढकने वाली भारतीय महिला के तन ढकने को पूरे कपडे नहीं है ,
शर्म हया आँखों से गायब है .. ये संस्कृति हमने कहा से अपनाई है ?
लगता है हवा भी पश्चिम से हो कर के आई है !!
दूध की नदियाँ बहाने वाले भारतवासियों के तन में अब नकली है खून भी .
पिज्जा बर्गर खाने वाले मस्त है ..दो वक़्त रोटी खाने वालो के लिए कमर तोड़ महंगाई है
सोने की चिड़िया तो उड़ गयी कब से ही.... इस आधुनिकता ने तो भारत माँ की रातो की नींद भी उड़ाई है ॥
मेरे देश की फिजा बदली बदली सी है आज कल
लगता है ये भी पश्चिम से हो कर के आई है॥
14 comments:
jandar,shandar,damdar.narayan narayan
लाजवाब और गजब की लौ दिखी आपकी इस रचना में , बहुत बढ़िया ।
सच्ची और अच्छी सोच - बहुत सुंदर रचना
हर शब्द में गहराई, बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति ।
bahut hi sunder rachna..
log hi pagal hain jo aise dhongi baba par wishwas kar lete hai
wishwas karna bura nahi par sath me apni aankhe khuli rakhni chaiye ki kis par wishwas kar rahe hain....
bahut hi badiya vijay ji...
भारत की माजूदा स्थिति को व्यक्त करती .......ये रचना बहुत बढ़िया लिखा आपने
मेरे देश की फिजा बदली बदली सी है आज कल
लगता है ये भी पश्चिम से हो कर के आई है॥
बहुत खूब.....!!
aap ne janta ki aawaj ko bahut ki khubsorti vaykat kiya hai...
bahoot khoob
bahut achchha likha hai
desh ke liye dard achchhe se jhalak raha hai!!!!!!!!!!!
Aapne akdam sahi likha hai.is rachna ak ak sabd 101% sahi hai.
very nice
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