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Monday, April 18, 2011
मुर्दों कि बस्ती में घर
मैंने मुर्दों कि बस्ती में, अपना घर बना लिया है ,
अपने हक कि आवाज़ को भी कब्र में दफना दिया है॥
चारों और जिन्दा लाशों से घिरा बैठा हूँ मैं
अपने ईमान को भी दीवारों में चुनवा दिया है
मैंने मुर्दों कि बस्ती में अपना घर बना लिया है॥
मेरी अंतरात्मा कि आवाज़ भी अब मेरे कानों तक नहीं आती
आँखे क्या खोलूं मैं, पीर मुझ से किसी कि देखी नहीं जाती ||
ये "लोकतंत्र" कुछ ही लोगो को आ रहा है रास
बाकी भारतीय तो भोग रहे है आजीवन वनवास ||
किस -किस को दोष दूँ मैं .. ..सब ने आज़ादी का तमगा लगा लिया है |
मैंने मुर्दों कि बस्ती में अपना घर बना लिया है॥
अपने हक कि आवाज़ को भी कब्र में दफना दिया है॥
न पक्ष को मेरी पड़ी है और न ही विपक्ष को मेरी पड़ी है
हर एक सफ़ेद पोश कि आँखों पे काली पट्टी चढ़ी है ॥
सफ़ेद कपडे वालों के दिल है कितने काले
दिख रहे है दूर तक घोटाले ही घोटाले
और जो थामने चला मैं लाल किले के तिरंगे को
जख्म से नासूर हो गये मेरे पैर के छाले
मैं सह रहा हूँ जीने का दर्द, इस दर्द को ही अब मैंने जीवन बना लिया है |
मैंने मुर्दों कि बस्ती में अपना घर बना लिया है ,
अपने हक कि आवाज़ को भी कब्र में दफना दिया है॥
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विजय पाटनी
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5 comments:
न पक्ष को मेरी पड़ी है और न ही विपक्ष को मेरी पड़ी है
हर एक सफ़ेद पोश कि आँखों पे काली पट्टी चढ़ी है ॥
क्या बात है,पूरी असलियत बयां कर दिया आपने...बहुत सुंदर।
mind blowing.............
fabulous.................
मैंने मुर्दों कि बस्ती में, अपना घर बना लिया है ,
अपने हक कि आवाज़ को भी कब्र में दफना दिया है॥
Bhrastachar se trast desh ki satya tasveer......lekin kab tak ham yun hi chup rah kar sab kuch sahte rahenge......AB uth khade hone aur apni awaj buland karne ka waqt aa gaya hai......
Acchi Kavita......Badhai
ये "लोकतंत्र" कुछ ही लोगो को आ रहा है रास
बाकी भारतीय तो भोग रहे है आजीवन वनवास ||
किस -किस को दोष दूँ मैं .. ..सब ने आज़ादी का तमगा लगा लिया है |
मैंने मुर्दों कि बस्ती में अपना घर बना लिया है॥
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अतुलनीय रचना .... बेहद ही खास और सच
सरे विरोधों को भूल आप परोपकार करें,,
परहित सरसी धर्म नहीं भाई...
पत्थर तो फल लगे पेड़ पर ही मारे जाते हैं...आप का ये प्रयास शायद आजीवन कारावास से मुक्ति दिलाने में सहायक हो
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