ये दो शक्लों वाला बलात्कार मुझे पचता नहीं है
तुम्हारी राजधानी में हुआ बलात्कार अत्याचार है
और हमारे कस्बें में हुआ बलात्कार चंद रुपयों का व्यपार है ?
सिर्फ इसलिए की वहां मीडिया है, हाई प्रोफाइल लोग है |
लाखों मोमबत्तियां और करोडो "मेल" फेशन में आ जातें है ||
चार दिन सार देश आँसूं बहाता है
और फिर पांचवे दिन ipl का नाच दिखाता है !
हमारे अख़बारों में स्त्रियाँ रोज दम तोड़ती है
रोज चीथड़े चीथड़े होता है बचपन
पर किसी के कानों पर जूं तक नहीं रेंगती ?
बड़ी "ढीट" व्यवस्था है, सिर्फ केमरे के सामने हिलती है !
अँधा पढ़ा लिखा समाज है , सिर्फ भीड़ का अनुसरण करता है :(
5 comments:
एक कडवा मगर बिल्कुल सच्चा सत्य है ये
बात तो आपकी सही ही है ...
यथार्थ चित्रण - कड़वा सच
कटु सत्य .....
don't agree to this...
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