ये जिन्दगी ...
जो कभी कहानी तो कभी गजल रही है ..!
कभी मछली सी ...
हाथो में है , जीने के लिए मचल रही है !!
कभी गीली साबुन सी ..
पकड़ना चाहो तो भी फिसल रही है !
कभी थक कर बैठ रही , कभी ख़ुशी से उछल रही है
ये जिन्दगी जो हर पल बदल रही है ...
जितना जीया इसे, उतना हाथ से निकल रही है !
ओनी पोनी जिन्दगी ,
आधा इंच ख़ुशी और एक इंच गम के बीच चल रही है ..
गिर रही है संभल रही है !!
2 comments:
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (05-05-2013) के चर्चा मंच 1235 पर लिंक की गई है कृपया पधारें. सूचनार्थ
VERY NICE..... VERY TRUE..
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