खेलती थी कूदती थी
अपने मन की करती थी
तितली सी थी ..
अपने बाग़ में इधर उधर उडती रहती थी ||
कुछ दिनों से वो गुमसुम है ... चुप चुप है
लोग कहते है वैसा करती है
देर रात को सोती है ...सुबह जल्दी उठती है |
कुछ आवाजें उसे .... ..अक्सर टोकती रहती है ||
वो ना जाने क्या क्या सोचती रहती है !!
खोने की उम्र है, पर सब कुछ संभाल रही है
खुद को नये संस्कारों में ढाल रही है
अपने आप को फिर से खंगाल रही है ||
अपने में ही कैद हो कर रह गई है ||
मासूम सी तितली , नये बाग़ में आ कर, खो गई है
कुछ दिन पहले उसकी शादी हो गई है :)
4 comments:
बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति. सुन्दर रचना. :-).
मन के भावो को खुबसूरत शब्द दिए है अपने.....
एक बालिका के, जीवन की अस्वाभाविक स्थितियों को निभाते जाने की की बेबसी !
बेह्तरीन अभिव्यक्ति .आपका ब्लॉग देखा मैने और नमन है आपको
और बहुत ही सुन्दर शब्दों से सजाया गया है लिखते रहिये और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.
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