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Sunday, March 7, 2010
happy womens's day (याद)
खुद की आँखों को नम रख के , उसने हमेशा हम को हँसना सिखाया
खुद गीले में सोती रही हमेशा.... हमे सूखे में सुलाया ॥
खुद हमेशा लडखडाती रही जिन्दगी के हर कदम पे,
पर हमे हमेशा ....संभल के चलना सिखाया॥
वो भूखी रही हमेशा ....हमे खिलाने के लिए ,
ज़माने से लडती रही... हमे अपनी पहचान दिलाने के लिए ॥
आँखों की रौशनी कम हो गयी थी उसकी,
फिर भी उसने हमेशा हमे सही रास्ता दिखाया ॥
वो खुद किसी और के सहारे जिन्दा थी,
पर हमे ..अपने पैरो पे खड़ा होना सिखाया ॥
अपना पूरा जीवन लगा के उसने ... हमारा ये अस्तित्व बनाया,
हम खुद कुछ कर सके ....हमे इस लायक बनाया ॥
हम इतने नालायक हो गए.. इन सब की परवाह नहीं की,
वो हमे हर मिनट याद करती रही , हमने उसे हर दिन भुलाया ॥
happy womens's day
Labels:
विजय पाटनी
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7 comments:
bilkul sahi kaha aapne...
nari shakti ko salaam....
very nice...
happy women's day..nice poem!!
very nice.bilkul sahi ,happy women's day......
Beautifully composed, impressive
waah kya baat hai...
kitna sahi kaha aapne
waah kya baat hai...
kitna sahi kaha aapne
waah kya baat hai...
kitna sahi kaha aapne
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