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Saturday, April 21, 2012

अर्जियां मेरी ..

 लिखी सौं अर्जियां.. , 
उसके दर तक , 
एक भी , भेजी  जा ना सकी |
मुरादें मेरी ...
उसके दर से ..
पूरी हो कर , आ ना सकी |

उसे यकीन था ...वो मुझे ...इतना तोड़ देगा 
की मैं हाथ फैलाये , उसके  दर तक चला आऊंगा ...!
पर हमसे हमारी खुशियाँ , कभी मांगी ना जा सकी |
वो पत्थर का ही  था , यह भी साबित हुआ 
दिल की बातें ...उसके कानों तक जा ना सकी ||
मुरादें मेरी ...उसके दर से ...पूरी हो कर आ  ना सकी | 

वो लेता रहा सब्र का  इम्तेहां मेरे ...सरे आम 
पर हमसे जिन्दगी से चीटिंग की ना जा सकी 
ग़मों में भी हम , खुल के  मुस्कराते रहे 
आसुओं की महफ़िल हमें कभी आजमा ना सकी |
 
लिखी सौं अर्जियां.. ,
 उसके दर तक ....
एक भी , भेजी  जा ना सकी |

2 comments:

विभूति" said...

लिखी सौं अर्जियां.. ,
उसके दर तक ,
एक भी , भेजी जा ना सकी |
मुरादें मेरी ...
उसके दर से ..
पूरी हो कर , आ ना सकी |मन के भावो को शब्द दे दिए आपने......

Unknown said...

bahut acchi kavita...

likhte rahiye

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