लिखी सौं अर्जियां.. ,
उसके दर तक ,
एक भी , भेजी जा ना सकी |
मुरादें मेरी ...
उसके दर से ..
पूरी हो कर , आ ना सकी |
उसे यकीन था ...वो मुझे ...इतना तोड़ देगा
की मैं हाथ फैलाये , उसके दर तक चला आऊंगा ...!
पर हमसे हमारी खुशियाँ , कभी मांगी ना जा सकी |
उसके दर तक ,
एक भी , भेजी जा ना सकी |
मुरादें मेरी ...
उसके दर से ..
पूरी हो कर , आ ना सकी |
उसे यकीन था ...वो मुझे ...इतना तोड़ देगा
की मैं हाथ फैलाये , उसके दर तक चला आऊंगा ...!
पर हमसे हमारी खुशियाँ , कभी मांगी ना जा सकी |
वो पत्थर का ही था , यह भी साबित हुआ
दिल की बातें ...उसके कानों तक जा ना सकी ||
मुरादें मेरी ...उसके दर से ...पूरी हो कर आ ना सकी |
वो लेता रहा सब्र का इम्तेहां मेरे ...सरे आम
पर हमसे जिन्दगी से चीटिंग की ना जा सकी
ग़मों में भी हम , खुल के मुस्कराते रहे
आसुओं की महफ़िल हमें कभी आजमा ना सकी |
लिखी सौं अर्जियां.. ,
उसके दर तक ....
एक भी , भेजी जा ना सकी |
एक भी , भेजी जा ना सकी |
2 comments:
लिखी सौं अर्जियां.. ,
उसके दर तक ,
एक भी , भेजी जा ना सकी |
मुरादें मेरी ...
उसके दर से ..
पूरी हो कर , आ ना सकी |मन के भावो को शब्द दे दिए आपने......
bahut acchi kavita...
likhte rahiye
Post a Comment