सर पर तगारी, या हाथ में फावड़ा
हमेशा वो दिखा मुझे , धुप से लड़ता हुआ
अपने से , चौगुना वजन लिए
गर्म सडक पर नंगे पैर , सरपट बढ़ता हुआ |
अपने पेट की अग्न को , शांत करने खातिर
खुद से हमेशा लड़ता हुआ ..
वातानुकूलित भवनों में रहने वाले, लोकतंत्र से
थोडा सहम थोडा डरता हुआ .. :(
इस महंगाई के महादानव से
तिल तिल कर मरता हुआ |
हमेशा दिखा मुझे, वो मजदुर , "मजबूर"
मौत में जिन्दगी भरता हुआ ||
चाहें लग जाए सावन या चल रहा हो वसंत
पर हमेशा पतझड़ की तरह झरता हुआ |
मजदुर दिवस के दिन भी
मजदूरी करता हुआ ||
मजदुर दिवस के दिन भी
मजदूरी करता हुआ ||