मैं केवल एक इंसान ही तो हूँ ॥?
क्या हुआ गर मुझे नहीं मिला, मेरी करनी का फल ...
क्या हुआ गर हुआ मैं , हर राह पे विफल ......
मै टूटते सपनों का , चलता फिरता शमशान ही तो हूँ
मैं केवल एक इंसान ही तो हूँ ॥?
क्या हुआ गर मेरे कदम सत्य कि तलाश में लडखडा जाते है
क्या हुआ गर कागज़ के चंद टुकड़े मुझे ललचाते है ?
मैं सिगरेट के पेकेट पे बना कैंसर का निशान ही तो हूँ
मैं केवल एक इंसान ही तो हूँ ॥?
क्या हुआ गर मै रिश्तों को एक धागे में पिरो नहीं पाया
क्या हुआ गर मैं कभी अपनों के काम नहीं आया ...
मै फिर भी मुश्किल सवालों का हल, आसान ही तो हूँ |
मैं केवल एक इंसान ही तो हूँ ॥?
क्या हुआ गर मुझे दर्द किसी का दिखाई नहीं देता
क्या हुआ गर मुझे सिसकियाँ किसी कि सुनाई नहीं देती
मै मंदिर में बैठा , पत्थर का भगवन ही तो हूँ ...
मैं केवल एक इंसान ही तो हूँ ॥?
क्या हुआ गर आशाएं मैंने किसी कि पूरी नहीं कि
क्या हुआ गर मैंने नाम किसी का नहीं किया रोशन
मैं फिर भी तुम्हारे लिए एक इनाम ही तो हूँ
मैं केवल एक इंसान ही तो हूँ ..||
मैं केवल एक इंसान ही तो हूँ ..||
3 comments:
क्या हुआ गर मेरे कदम सत्य कि तलाश में लडखडा जाते है
क्या हुआ गर कागज़ के चंद टुकड़े मुझे ललचाते है ?
मैं सिगरेट के पेकेट पे बना कैंसर का निशान ही तो हूँ
मैं केवल एक इंसान ही तो हूँ ॥?
वाह्………क्या खूब कहा है।
बहुत सुंदर रचना - बधाई
bahut hi sunder rachna .... way to go!!!
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