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Wednesday, September 18, 2019

अरुणोदय

अरुणोदय


स्वर्णरथ पर सवार,

तिमिर क्षयकार,

हारने अंत: का अंधकार,

हो रहा उदय

अरुणोदय।


निशा के पराक्रम को के ध्वस्त

इंदु के दंभ को कर विनष्ट

हो रहा उदय

अरुणोदय।


फैलाने जग में प्रकाश

करने अंत: करण उजास

हो रहा उदय

अरुणोदय।


स्वर्ण रश्मि बिखेर कर

नव दिवस कर रहा प्रदत

हो रहा उदय

अरुणोदय।


शुभम्.


Sunday, July 28, 2019

ज़िन्दगी

ज़िंदगी

जिंदगी दुनिया कि पटरी पर दौड़त हुयी एक रेलगाड़ी है जिसमे समय समय पर कई किरदार शामिल होते है और अपने गंतव्य पर उतर कर चले जाते है।


कई बार जिंदगी परियों की कहानी जैसी लगती है,
कई उतार-चढ़ाव के बाद एक सुखद अंत मे बदलती  हुई।


कभी सुगंधित फूल की तरह कोमल
तो कभी कठोर चट्टान के जैसे
सारे तुफान का सामना करते हुए।


कई बार सूर्यास्त की तरह सुंदर जिंदगी
पल मे गहरी रात मे तब्दील हो जाती है,


तो कई बार इंद्रधनुष सी रंगीन जिंदगी
पानी की तरह बेरंग मिलती है।


उलझी सुलझी, सुलझी उलझी


गिरती- उठती, आगे बढती।


बस बढते ही जाने का नाम है जिंदगी।।

शुभम् .


Monday, July 22, 2019

भोले बाबा

भोले बाबा

 गजानन पंडित भोले बाबा के अंधभक्त थे। भोले बाबा के मंदिर के पास ही अपनी छोटी सी कुटिया बना रखी थी। दिन उगने से पहले ही अपनी दैनिक क्रिया से निर्वित्त हो वे भोले बाबा की सेवा में लग जाते। रोज की तरह पूजा की सामग्री ले ज्यों ही गजानन पंडित भोले बाबा के समीप जाकर बैठे, देखा कि बाबा की जटाओं से बूंद बूंद कर पानी रिस रहा है ऊपर नीचे चारों और अच्छी तरह से देखा कहीं से पानी तो नहीं टपक रहा, पर चारों और तो सूखा पड़ा है ,हालांकि महीना सावन का है।

              घबराकर पंडित जी घर की ओर भागे और अपने बड़े बेटे चौमुखानंद को पकड़ लाए और कहने लगे "देख तो जरा यह भोले बाबा के ऊपर पानी कहां से गिर रहा है।"

 16 साल के चौमुखानंद आधी नींद में आंख मलते हुए छत की ओर देखते हुए बोला "बाबूजी समझ में नहीं आ रहा।"

 "अरे ठीक से देख ना " पंडित जी ने डांट कर बोला।

बाप बेटे का संवाद चल ही रहा था कि बुढ़िया अम्मा का मंदिर में प्रवेश हुआ।

"का हुआ गजानन काहे खिसिया रहे हो" अम्मा ने लाठी टेकते हुए पूछा।

"अरे अम्मा यहां आओ जल्दी देखो शिव जी के जटा से पानी गिर रहा है" पंडित जी एक सांस में बोल गए।

"ई तो चमत्कार है गजानन साक्षात गंगा जी निकली है"

"हमको भी यही लग रहा अम्मा"

अचानक बाहर से भोले बाबा के जयकारे की आवाज आने लगी। पंडित जी को समझते देर न लगी कि चौमुखानंद ने नारद जी का काम कर दिया है।

आनन-फानन में पंडित जी ने शिवजी पर फूल माला चढ़ाया टीका आदि लगाकर मंदिर का द्वार खोला।

अब तक सैकड़ों लोगों की भीड़ मंदिर के बाहर लग चुकी थी। कुछ नौजवान व्यवस्था बनाने में लगे हुए थे। एक-एक करके श्रद्धालुओं को मंदिर के अंदर भेजा जा रहा था। श्रावक गण भक्ति भाव सहित भोले बाबा के दर्शन करते और जटा से निकलती गंगा अपने साथ लाए पात्रों में बटोरने का प्रयास करते। जल्द ही मीडिया वालों को भी पता चल गया। अब वहां श्रद्धालुओं के साथ साथ एक लाइन मीडिया वालों की भी लग गई। सभी अपना कैमरा माइक संभाले टीआरपी बढ़ाने की होड़ में लग गए। पलटू ने भी जूता चप्पल संभालने का एक काउंटर लगा लिया और उसके बाजू में बच्चू ने गुमशुदा बच्चों की अनाउंसमेंट का जिम्मा संभाल लिया। एक कोना चाट पकौड़ी और गुब्बारे वालों ने भी पकड़ लिया। 

पंडित जी के मुंह में तो सुबह से एक निवाला भी ना पड़ा था। पांच छह बार दान पेटी खाली कर चुके थे। शाम हो चली थी लोगों का आना थम ही नहीं रहा था। इतने में खबर आई कि गृह मंत्री जी आ रहे हैं दर्शन करने। पंडित जी गृह मंत्री के स्वागत तैयारी में लगे थे इसी बीच उनकी गृह स्वामिनी के चिल्लाने की आवाज आने लगी " क्या बात है आप सोते पड़े रहोगे क्या मंदिर का घंटा बजने लगा है चौमुखानंद आज तुमसे पहले मंदिर पहुंच गया सावन का पहला सोमवार है अब उठ भी जाओ। "

शुभम्.

Thursday, June 27, 2019

इंतजार

इंतजार।         

"विमला आज २० दिन हो गए, मनोज लेने नहीं आया मुझे। कह कर तो हफ्ते भर का ही गया था। विदेश जाना था उसे, ऑफिस के किसी काम से। बहू तो मायके जा रही थी, बच्चो की छुट्टी थी ना। अब तो छुट्टियां भी खत्म हो गई होंगी, बहू ही आकर ले जाती। बड़ा जी घबराता है रे यहां। पता नहीं गुड़िया कैसे सोती होगी? बिना मुझसे कहानी सुने उसे नींद ही नहीं आती। सोते सोते मेरा हाथ पकड़ लिया करती है, डरती है थोड़ा। " जानकी अम्मा बेंच पर बैठे बैठे आश्रम की देखभाल करने वाली विमला ताई से ये सारी बाते कह रही थी। विमला ताई चुपचाप उनकी ये बात सुन रही थी। वो जानती थी कि अब किसी को जानकी अम्मा की जरूरत नहीं , मनोज कभी नहीं आने वाला लेने पर वो बोल नहीं सकती थी। जो भी थोड़ी आस ने जानकी अम्मा को जीवित रखा है उसे ताई नहीं तोड़ सकती।

        लगभग छः महीने बीत गए।

" विमला क्या मनोज का कोई फोन आया?"

" नहीं अम्मा फोन नहीं आया।"

"हुंह, अब तो उसके आने का इंतजार मेरे साथ ही ख़तम होगा। अच्छा विमला सुनो मेरी बात" खांसते हुए जानकी अम्मा ने बोला  " मेरी एक बात मानना मेरे मौत की खबर मनोज को मत देना, टूट जाएगा बेचारा। मेरा क्रिया कर्म अपना रामू माली है ना जो रोज ये फूल गुलदान में लगा जाता है वो कर देगा। बात हो गई है उससे मेरी। अच्छा अब मुझे सोना है। बहुत नींद आ रही है आज। बत्ती बुझा देना।।

शुभम्.   

Tuesday, June 25, 2019

गलतफहमी

गलतफहमी

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कई बार जीवन में गलतफहमी भी सुखद अहसास भर देती है। एक मरीचिका की तरह को रेगिस्तान में भटके प्यासे के जीवन का सहारा बन जाता है।

         राधा के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। राजेश आया तो था अपने दोस्त और राधा के भाई मनोज के मौत की खबर ले कर पर, राधा ने तो राजेश को ही मनोज समझ लिया। उसका नहीं देख पाना उसके लिए वरदान हो गया। जैसे ही उसने सुना एक फौजी घर आया है , वो भागती हुई आई और राजेश के गले लग कर बोली भैया मुझे पता था इस बार राखी पर आप जरूर घर आओगे। बूढ़ी काकी ने पीछे से बताना चाहा पर राजेश ने इशारे से मना कर दिया। मनोज की सारी जिम्मेदारी अब वो उठाना चाहता था। आखिर उसकी ये ज़िन्दगी मनोज की ही तो देन थी। और  उसने राधा की ये गलतफहमी कभी दूर नहीं की।।


शुभम्. 


Sunday, June 23, 2019

शौक

शौक
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बचपन से लेकर जवानी तक ना जाने कितने शौक जीवन मे शुमार हुए,

 कुछ पुरे होते गए कुछ बिखरते गए

कुछ को तो मैने चुपके से जी लिया।

गीली मिट्टी की सौंधी सी खुशबूू  लेने का शौक बहुत था बचपन मे आज वो शौक अपने घर मे लगे चार गमले मे पानी डालते वक्त पूरा कर लेती हूं,

पर, पर कुछ फर्क सा है इस मिट्टी की खुशबू और उस मिट्टी की सुगंध मे।

बचपन के गुड्डे गुडिया अब मेरे बच्चो मे बदल गये है, अपनी चित्रकारी का शौक उनकी ड्राईंग बुक मे पुरा करती हूं।

घर घर खेलने का शौक कब घर संभालना सिखा गया पता ना चला। 

समय बदलता गया शौक बदलते गये,

कुछ नये शौक ने जन्म लिया,कुछ पुराने शौक वहीं तटस्थ रहे।।


शुभम्.

Saturday, June 22, 2019

जूही की कली

जूही की कली
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"नहीं कमल तुम मेरे साथ ऐसा नही कर सकते।"

"मैं मजबूर हूं जूही।"

" ऐसी कैसी मजबूरी? तुम इतने पढ़े - लिखे हो। इतना बड़ा कारोबार संभालते हो फिर भी इतनी दकियानुसी सोंच! हैरान हूं मैं।"

" ये मेरे घर की परम्परा है जिसे मै नही तोड़ सकता। मेरे घर मे सभी को पहला बच्चा लड़का हीं होता है लड़की नही।"

" फिर मैं ये रिश्ता तोड़ती हूं। जा रही हूं मैं।"


चार महीने बाद नर्सिंगहोम के बेड़ पर जूही बैठी है। पास ही उसके माता-पिता खड़े है और गोद में उसकी नन्हीं कली मुस्का रही है। जूही की कली। सिर्फ जूही की। 


शुभम् .


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