भूख (लघुकथा )
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गज्जू राम का ढाबा हम ट्रक वालों की पसंदीदा जगह हुआ करती थीं। उसके बाटी चोखे के साथ अपने बाईपास कि थकान मिटाने हम वहां जरूर रुका करते थे।
हमेशा की तरह उस दिन भी मैं ढाबे पर बैठा बाटियां खा रहा था, तभी झाड़ियों की झुरमुट से दो आंखों को मेरी ओर घूरते देखा। थोड़ा तांका झाका तो पाया कि एक लड़की बड़ी हसरतों से मुझे देख रही थी। बड़ी गहरी थी उसकी आंखे। अगले ही पल वो मेरे सामने आकर खड़ी हो गई। अपनी किशोरवस्था में थी वो। मैं कुछ पूछता उसके पहले ही वो अपने कंधे पर पड़ा मैला सा दुपट्टा नीचे गिराते हुए बोली " साहेब दो दिन से कुछ नहीं खाया । आप मेरी भूख शांत कर दो मैं आपकी कर दूंगी। "
शुभम्
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मार्मिक
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