गुजरा ज़माना
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बहुत दिनों बाद आज फुर्सत में बैठी हूँ
चलो जरा सैर कर आऊँ , उस पिछले गुजरे ज़माने कि
जो सोने से कहीं ज्यादा सुनहरे है
उन यादों का बोरला बना मैं अपने माथे पर आज भी सजाती हूंं।
वो पहले मिलन कि शर्म का काजल आज भी मेरे आंखो को सजाता है।
बगीया के लाये उन फूलों की खुशबू , देखो ना अब भी मेरे बालो से आ रही।
वो कच्चे आम के चटकारे जो हमने बगान मे से चुराकर खायेे थे याद आते ही दाांत खट्टे कर जाते है।
हमारे बस्ते इतने भारी नहीं हुआ करते थे, पर दुनियाभर के खजाने उसमे छुपे होते थे।
गर्मी की दुपहर इतनी गर्म ना थी, तारों की छांव हीं काफी थी हमारी मीठी नींद के लिए।
सुबह सुरज कि तेज किरणोंं पर बडा गुस्सा आता था, पर फिर नीम के झूले टप्पे और टीले मे वो गुस्सा गायब हो जाता।
बचपन के वो सुहाने दिन जवानी के दौर से होते हुए आज भी मेेेेरेे जीवन को बडी खूबसूरती से सजाते है।
शुभम्.
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