जूही की कली
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"नहीं कमल तुम मेरे साथ ऐसा नही कर सकते।"
"मैं मजबूर हूं जूही।"
" ऐसी कैसी मजबूरी? तुम इतने पढ़े - लिखे हो। इतना बड़ा कारोबार संभालते हो फिर भी इतनी दकियानुसी सोंच! हैरान हूं मैं।"
" ये मेरे घर की परम्परा है जिसे मै नही तोड़ सकता। मेरे घर मे सभी को पहला बच्चा लड़का हीं होता है लड़की नही।"
" फिर मैं ये रिश्ता तोड़ती हूं। जा रही हूं मैं।"
चार महीने बाद नर्सिंगहोम के बेड़ पर जूही बैठी है। पास ही उसके माता-पिता खड़े है और गोद में उसकी नन्हीं कली मुस्का रही है। जूही की कली। सिर्फ जूही की।
शुभम् .
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