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Tuesday, June 18, 2019

पपीहा

पपीहा

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आज छत से फिर पपीहे के बोलने की आवाज आयी।६ साल से इस विरह की आग में उस कश की तरह जल रहा हूं, जिसके धुएं से तुमको नफरत थी। इस पपीहे की आवाज जलन को और बढ़ा देती है। 


कभी सोचा ना था तुम इस तरह मुझे छोड़ कर चली जाओगी और वो भी जीवन के इस मोड़ पर। बच्चो के प्रति अपनी सारी जिम्मेदारी तुमने पूरी कर दी, पर मुझे तो उस समय धोका दे दिया जब मुझे तुम्हारी सबसे ज्यादा जरूरत थी। 


अब तो थोड़े सुकुं के पल हमने साथ बिताने शुरू किए थे। अक्सर याद आता है मुझे तुम्हारी अंतिम तीज पर मेरा पहली बार तुम्हे मेहंदी लगाना। कैसे हुलास कर तुमने फोन पर बच्चो को बताया था, चुपके से सुन लिया था मैंने। आ जाओ आज भी लगा दूंगा , थोड़ी प्रैक्टिस कर ली है अब। 


बचपन का साथ था हमारा। सोचा था अंतिम सांस भी साथ लेगे पर तुम बाज़ी मार गई। अब ये पपीहा और इसकी पीहू पीहू मेरी हार के दर्द को असहनीय कर रहे है।।

शुभम् .

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