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Thursday, June 27, 2019

इंतजार

इंतजार।         

"विमला आज २० दिन हो गए, मनोज लेने नहीं आया मुझे। कह कर तो हफ्ते भर का ही गया था। विदेश जाना था उसे, ऑफिस के किसी काम से। बहू तो मायके जा रही थी, बच्चो की छुट्टी थी ना। अब तो छुट्टियां भी खत्म हो गई होंगी, बहू ही आकर ले जाती। बड़ा जी घबराता है रे यहां। पता नहीं गुड़िया कैसे सोती होगी? बिना मुझसे कहानी सुने उसे नींद ही नहीं आती। सोते सोते मेरा हाथ पकड़ लिया करती है, डरती है थोड़ा। " जानकी अम्मा बेंच पर बैठे बैठे आश्रम की देखभाल करने वाली विमला ताई से ये सारी बाते कह रही थी। विमला ताई चुपचाप उनकी ये बात सुन रही थी। वो जानती थी कि अब किसी को जानकी अम्मा की जरूरत नहीं , मनोज कभी नहीं आने वाला लेने पर वो बोल नहीं सकती थी। जो भी थोड़ी आस ने जानकी अम्मा को जीवित रखा है उसे ताई नहीं तोड़ सकती।

        लगभग छः महीने बीत गए।

" विमला क्या मनोज का कोई फोन आया?"

" नहीं अम्मा फोन नहीं आया।"

"हुंह, अब तो उसके आने का इंतजार मेरे साथ ही ख़तम होगा। अच्छा विमला सुनो मेरी बात" खांसते हुए जानकी अम्मा ने बोला  " मेरी एक बात मानना मेरे मौत की खबर मनोज को मत देना, टूट जाएगा बेचारा। मेरा क्रिया कर्म अपना रामू माली है ना जो रोज ये फूल गुलदान में लगा जाता है वो कर देगा। बात हो गई है उससे मेरी। अच्छा अब मुझे सोना है। बहुत नींद आ रही है आज। बत्ती बुझा देना।।

शुभम्.   

Tuesday, June 25, 2019

गलतफहमी

गलतफहमी

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कई बार जीवन में गलतफहमी भी सुखद अहसास भर देती है। एक मरीचिका की तरह को रेगिस्तान में भटके प्यासे के जीवन का सहारा बन जाता है।

         राधा के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। राजेश आया तो था अपने दोस्त और राधा के भाई मनोज के मौत की खबर ले कर पर, राधा ने तो राजेश को ही मनोज समझ लिया। उसका नहीं देख पाना उसके लिए वरदान हो गया। जैसे ही उसने सुना एक फौजी घर आया है , वो भागती हुई आई और राजेश के गले लग कर बोली भैया मुझे पता था इस बार राखी पर आप जरूर घर आओगे। बूढ़ी काकी ने पीछे से बताना चाहा पर राजेश ने इशारे से मना कर दिया। मनोज की सारी जिम्मेदारी अब वो उठाना चाहता था। आखिर उसकी ये ज़िन्दगी मनोज की ही तो देन थी। और  उसने राधा की ये गलतफहमी कभी दूर नहीं की।।


शुभम्. 


Sunday, June 23, 2019

शौक

शौक
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बचपन से लेकर जवानी तक ना जाने कितने शौक जीवन मे शुमार हुए,

 कुछ पुरे होते गए कुछ बिखरते गए

कुछ को तो मैने चुपके से जी लिया।

गीली मिट्टी की सौंधी सी खुशबूू  लेने का शौक बहुत था बचपन मे आज वो शौक अपने घर मे लगे चार गमले मे पानी डालते वक्त पूरा कर लेती हूं,

पर, पर कुछ फर्क सा है इस मिट्टी की खुशबू और उस मिट्टी की सुगंध मे।

बचपन के गुड्डे गुडिया अब मेरे बच्चो मे बदल गये है, अपनी चित्रकारी का शौक उनकी ड्राईंग बुक मे पुरा करती हूं।

घर घर खेलने का शौक कब घर संभालना सिखा गया पता ना चला। 

समय बदलता गया शौक बदलते गये,

कुछ नये शौक ने जन्म लिया,कुछ पुराने शौक वहीं तटस्थ रहे।।


शुभम्.

Saturday, June 22, 2019

जूही की कली

जूही की कली
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"नहीं कमल तुम मेरे साथ ऐसा नही कर सकते।"

"मैं मजबूर हूं जूही।"

" ऐसी कैसी मजबूरी? तुम इतने पढ़े - लिखे हो। इतना बड़ा कारोबार संभालते हो फिर भी इतनी दकियानुसी सोंच! हैरान हूं मैं।"

" ये मेरे घर की परम्परा है जिसे मै नही तोड़ सकता। मेरे घर मे सभी को पहला बच्चा लड़का हीं होता है लड़की नही।"

" फिर मैं ये रिश्ता तोड़ती हूं। जा रही हूं मैं।"


चार महीने बाद नर्सिंगहोम के बेड़ पर जूही बैठी है। पास ही उसके माता-पिता खड़े है और गोद में उसकी नन्हीं कली मुस्का रही है। जूही की कली। सिर्फ जूही की। 


शुभम् .


Thursday, June 20, 2019

अनुराग

अनुराग        (२०/६/२०१९)

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मीता रोज अपनी बालकनी से अनुराग को स्कूल जाते देखा करती थी। अनुराग भी अपनी मां के मना करने के बावजूद चुपके से पलट कर उसे बाय जरूर कर देता था। अनुराग को देखकर मीता के मां ना बन पाने की तड़प कुछ पल के लिए शांत हो जाती। अनुराग भी अपनी छोटी मां से प्यार पाने के लिए बैचन रहता था। आखिर मीता ने ही तो उसे पाला था, जहान्वी को तो बच्चा चाहिए ही नहीं था। 

               झगड़े तो बड़े कर लेते है बच्चे तो अबोध होते है। शाम को खेलते वक्त अनुराग जानबूझ कर बॉल मीता के आंगन में फेंक देता, ताकि बॉल लाने के बहाने छोटी मां से मिल लेगा। मीता भी तैयार रहती, उसके आते ही फौरन उसे गले से लगा दो चॉकलेट हाथ में पकड़ा देती। 

              दो दिन हो गए अनुराग दिखा नहीं उसे। मीता ने पति से पता लगाने बोला, पर बड़े भाई की नाराज़गी आड़े आ गई। आखिरकार मीता खुद गई  जहान्वी के घर। अनुराग अनुराग आवाज लगाया तो उसकी आया ने बताया कि अनुराग को दो दिन से तेज बुखार है, अभी अस्पताल के कर गए है।
               बदहवासी सी मीता अस्पताल पहुंची। वहां बेड पर बेहोश पड़ा अनुराग छोटी मां की रट लगाए था। मीता को देखते ही जहान्वी की अश्रुधारा बह निकली। उसे गले से लगा वो बोल रही थी "अपने अनुराग को बचा लो मीता, अपने अनुराग को बचा लो" ।।

शुभम्.


Tuesday, June 18, 2019

पपीहा

पपीहा

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आज छत से फिर पपीहे के बोलने की आवाज आयी।६ साल से इस विरह की आग में उस कश की तरह जल रहा हूं, जिसके धुएं से तुमको नफरत थी। इस पपीहे की आवाज जलन को और बढ़ा देती है। 


कभी सोचा ना था तुम इस तरह मुझे छोड़ कर चली जाओगी और वो भी जीवन के इस मोड़ पर। बच्चो के प्रति अपनी सारी जिम्मेदारी तुमने पूरी कर दी, पर मुझे तो उस समय धोका दे दिया जब मुझे तुम्हारी सबसे ज्यादा जरूरत थी। 


अब तो थोड़े सुकुं के पल हमने साथ बिताने शुरू किए थे। अक्सर याद आता है मुझे तुम्हारी अंतिम तीज पर मेरा पहली बार तुम्हे मेहंदी लगाना। कैसे हुलास कर तुमने फोन पर बच्चो को बताया था, चुपके से सुन लिया था मैंने। आ जाओ आज भी लगा दूंगा , थोड़ी प्रैक्टिस कर ली है अब। 


बचपन का साथ था हमारा। सोचा था अंतिम सांस भी साथ लेगे पर तुम बाज़ी मार गई। अब ये पपीहा और इसकी पीहू पीहू मेरी हार के दर्द को असहनीय कर रहे है।।

शुभम् .

Monday, June 17, 2019

किसका कसूर

किसका कसूर
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आज जब अतीत के पन्ने पलट कर देखती हूं 


तो समझ नही आता कि कसूर तुम्हारा था या मेरा


या कसूर सारा उस एक पल का था


जिसने हमें जीवन के उस मोड़ पर खड़ा कर दिया था 


जहां से हमारा रास्ता अलग होना ही था।


अभी कल ही की तो बात लगती है 


जब मेरी हर छोटी बड़ी पसंद नापसंद तुम्हे पता होती थी


और मैं तुम्हारी आंखों से तुम्हारा मन पढ़ लिया करती थी


फिर उस दिन तुम क्यों ना समझ पाए मेरे उस मौन को


और मैं क्यो ना पढ़ सकी तुम्हारी चुप्पी 


हमने कैसे अपने दरमायन उस दूरी को बढ़ने दिया


काश हमदोनो में से कोई एक वाचाल होता,,,,


आज कई रिश्तों के शोर चारो ओर बिखरे है


पर दिल की गहराई में एक सन्नाटा सा है


एक खालीपन सा,


जहां कुछ धुंधला सा तुम्हारा नाम दिखता है।

शुभम् 


Sunday, June 16, 2019

सौभाग्य

सौभाग्य

छल्ली कर अपने सीने को दे दी कुर्बानी जान की,

सुनो सुनाऊं मैं कहानी उस वीर के बलिदान की।


नटखट था लला मेरा वो, इधर उधर छुप जाता था,

खोज खोज जब तक जाती मैं दूर खड़ा मुस्काता था।


अभी भी मानो जा छुपा हो कहीं किसी के आंगन में

झट आकर के झूल जाएगा अपनी मां के बाहों में।


गांधी भगत के किस्से उसको भाते बहुत थे बचपन में,

उन्हीं जैसा वीर बनूंगा कहता रहता हरदम से।


सपनो को सच करने अपने जा भर्ती हुआ सेना में,

युद्ध छिड़ी सरहद पर जा तैनात हुआ फिर वो झट से।


मार गिराए दुश्मन को ना जाने कितने कितनो को,

आंच ना आने दी भारत पर डटा रहा जवान वो।


थक गया जब गिर पड़ा  वो भू पर  हो कर शांत,

मां पुकारा था शहीद ने वो ही अंतिम बार।


आज ले रही परमवीर चक्र मैं उसके ही नाम का,

है मेरा सौभाग्य बनी मै ऐसे पुत्र की मां।।


शुभम् .


Friday, June 14, 2019

गुजरा ज़माना

गुजरा ज़माना

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बहुत दिनों बाद आज फुर्सत में बैठी हूँ


चलो जरा सैर कर आऊँ , उस पिछले गुजरे ज़माने कि 


जो सोने से कहीं ज्यादा सुनहरे है 


उन यादों का बोरला बना मैं अपने माथे पर आज भी सजाती हूंं।


वो पहले मिलन कि शर्म का काजल आज भी मेरे आंखो को सजाता है।


बगीया के लाये उन फूलों की खुशबू , देखो ना अब भी मेरे बालो से आ रही।


वो कच्चे आम के चटकारे जो हमने बगान मे से चुराकर खायेे थे याद आते ही दाांत खट्टे कर जाते है।


हमारे बस्ते इतने भारी नहीं हुआ करते थे, पर दुनियाभर के खजाने उसमे छुपे होते थे।


गर्मी की दुपहर इतनी गर्म ना थी, तारों की छांव हीं काफी थी हमारी मीठी नींद के लिए।


सुबह सुरज कि तेज किरणोंं पर बडा गुस्सा आता था, पर फिर नीम के झूले टप्पे और टीले मे वो गुस्सा गायब हो जाता।


बचपन के वो सुहाने दिन जवानी के दौर से होते हुए आज भी मेेेेरेे जीवन को बडी खूबसूरती से सजाते है।

शुभम्.

Wednesday, June 12, 2019

गलतफहमी

गलतफ़हमी         (लघुकथा)

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बिरजू और सरजू की पूरे गांव में एक अलग पहचान थी। इन दोनो भाईयों का आपसी प्रेम गांववालों के लिए एक मिसाल था। आज के समय मे जब भाई-भाई का दुश्मन है, ये दोनो भाई एक दूसरे के लिए जान देने को तत्पर रहते। दोनोंं की बीवियां भी सगी बहनो से कम ना थी और बच्चेंं तो पता भी नही चलते कौन किसके है। अगाध प्यार से भरा ये परिवार खूब फला-फूला ।

आज बरसो बाद गांव लौटा हूं । उनके घर गया देखा आंगन में दीवार खींची है। सुनने मे आया कोई शकुनि आया था । गलतफ़हमी कि दीवार खड़ा कर गया।

शुभम्  .

भूख

भूख       (लघुकथा )       
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गज्जू राम का ढाबा हम ट्रक वालों की पसंदीदा जगह हुआ करती थीं। उसके बाटी चोखे के साथ अपने बाईपास कि थकान मिटाने हम वहां जरूर रुका करते थे। 

हमेशा की तरह उस दिन भी मैं ढाबे पर बैठा बाटियां खा रहा था, तभी झाड़ियों की झुरमुट से दो आंखों को मेरी ओर घूरते देखा। थोड़ा तांका झाका तो पाया कि एक लड़की बड़ी हसरतों से मुझे देख रही थी। बड़ी गहरी थी उसकी आंखे। अगले ही पल वो मेरे सामने आकर खड़ी हो गई। अपनी किशोरवस्था में थी वो। मैं कुछ पूछता उसके पहले ही वो अपने कंधे पर पड़ा मैला सा दुपट्टा नीचे गिराते हुए बोली " साहेब दो दिन से कुछ नहीं खाया । आप मेरी भूख शांत कर दो मैं आपकी कर दूंगी। " 

शुभम् 

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