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Friday, May 7, 2010

happy mothers day.


कही पढ़ा था मैंने ...
सख्त रास्तों में भी आसान सफ़र लगता है,
ये मुझे मेरी माँ की दुआओं का असर लगता है,
एक मुद्दत से मेरी माँ सोयी नहीं,
जब मैंने कहा माँ मुझे डर लगता है....
यो तो माँ के बारे में जितना भी लिख लो बोल लो कम ही है...माँ की गोद, उसका प्यार-दुलार, उसकी डांट-फटकार ..............मुझे मेरी माँ के साथ साथ मेरी बड़ी माँ का भी उतना ही प्यार मिला.... कुछ पंक्तियाँ मेरी बड़ी माँ के लिए जो आज हमारे बीच में नहीं हैं पर वो जहाँ कहीं भी हैं हमे देख रही हैं और उनका आशीर्वाद हमेशा हमारे साथ है॥
आज ओढा जो मैंने दुप्पट्टा तेरा,माई,,
तेरी खुश्बो मेरी साँसों में उतर आई,
छुआ जो तेरी चूड़ियों को मैंने,
लगा जैसे छु ली हो मैंने तेरी कलाई,
हर चीज़ तेरी तडपाती है माँ,
मुझे याद तेरी बहुत आती है माँ।
याद आता है तेरा सुबह-२ जगाना,
वो सहलाना माथा,वो सर पे हाथ फिराना,
वो कहना की बेटा उठो नहा लो,पूजा कर लो,
वो तेरा मोहब्बत से देख मुस्कुराना,
हर सुबह मुझको रुला जाती है माँ,
मुझे याद तेरी बहुत आती है माँ।
ये आंसू मेरे थमते नहीं हैं क्यूँ,
तू क्या गयी लुट गया मेरे दिल का सुकून,
ये तो मर्जी है मालिक की,
जानती हु फिर भी बेकल सी मैं रहूँ,
तेरी तस्वीर आँखों से नहीं जाती है माँ,
मुझे याद तेरी बहुत आती है माँ।
इतनी जल्दी तू मुझको छोड़ गयी क्यूँ,
मुझ से ये नाता तोड़ गयी क्यूँ,
हर लम्हा तेरे बिन एक इम्तिहान है,
किस बात से खफा हो मुह मोड़ गयी क्यूँ,
आँखों में हर रात गुजर जाती है माँ,
मुझे याद तेरी बहुत आती है माँ...
मुझे याद तेरी बहुत आती है माँ...
happy mothers to all gr8 moms..

9 comments:

nilesh mathur said...

ऊपर की चार पंक्तियाँ शायद आपकी लिखी नहीं है, क्योंकि ये मैंने बहुत दिन पहले पढ़ी थी! शेष बहुत सुन्दर है!

विजय पाटनी said...

bahut hi acchi likhi hai ekta aapne

yaad mujh ko aa gayi ma jab bhi dekha mombati ko pighalte hue maine :)

@ nilesh ji ys wo ekta ne nahi likha h wo line acchi thi is liye use is poem ke saath jod diya gaaya h :)

Anonymous said...

अगर आपकी लिखी हुई हैं तो काबिले तारीफ?

nilesh mathur said...
This comment has been removed by the author.
nilesh mathur said...

विजय जी, बुरा मत मानियेगा इस तरह किसी दुसरे की पंक्तियों को अपनी रचना में जोड़ना तो ठीक नहीं है, इससे लेखक की बाकी रचनाओं पर भी सवाल उठने लगते है!

संजय भास्‍कर said...

इस धरा पर मां ईश्वर की प्रतिनिधि है,क्या कहूं शब्द कम पढ़ जाते हैं।मां से दर्द का रिश्ता है।

संजय भास्‍कर said...

इश्वर सब जगह नहीं हो सकता था, इसलिए उसने मा बनाई!

कीर्ति राणा said...

ektaji
jo pankatiya aap ki post me hai, wo muze bhi priya hai.
world ke naami shayar munnawar rana ki yah puri gazal aap mere blog 'pachmel'par padh sakti hai.

PASHA said...

khush panktiyon me sahajataa nahi hai kuch mehanat ki aur jarurat hai

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