
मेरे आंसू की कीमत लगाते हैं वो ....
जिन के होंटो पे हमने हसीं... दि थी कभी ॥
मुझ में समां के मुझ से जुदा होना चाहते है वो .....
जिन्होंने आने पे दस्तक भी दि न कभी ॥
वो बदलें इतनी जल्दी अपनी बातों से ....
इतनी जल्दी तो मौसम भी बदलते नही ॥
मैंने उन को कहा कुछ सब्र तो करो
मेरे अहसासों की कुछ कद्र तो करो ...
लेकिन वो तोड़ गए मुझ से रिश्ते सभी
अब कोई टूटे हुए को न तोड़े अभी ॥
इस तरह उसने लूटा मेरे जज्बातों को
मेरे आसूओं को कह गए बरसात वो
इस कद्र मिलें गम ख्यालात मैं ....
के अब तो मुस्कान भी चेहरे पे टिकती नहीं ॥
तेरा ख्याल दिल से जाता नहीं ॥ पर अब तू याद भी हम को आता नहीं
बस अश्कों को शब्दों में पिरोते है ..और नया सा कुछ लिख देते है यहीं ॥
10 comments:
बहुत सुन्दर!
very nice..
as usual
आपने बड़ा ही अच्छा बुना है इस रचना को अपनी कपना शक्ति से..........
या कहें
शब्दों के मोतियों को आपने पिरो दिया है ख्यालों की डोरी से ......
धन्यवाद इस रचना के लिए .........
so painful..but ture
अश्क जब कुछ् लिखते हैं तो सैलाब आता है
बहुत खूब
यह पंक्तियाँ दिल में उतर गयीं.....
तारीफ के लिए हर शब्द छोटा है - बेमिशाल प्रस्तुति - आभार.
अश्क तो किस्मत बन जाता है। कुछ बहा देते हैं कुछ सिर्फ पी जाते हैं। पर पीने वाले अंदर ही अंदर घुट जाते हैं। इश्क का पहलू हर किसी को रास नहीं आता। पर क्या करें तलाश भी तो नहीं रुकती।
रिश्ते तो पैसे के आगे अक्सर दम तोड़ देते हैं। एक ढू़ढो हजार मिसाल मिल जाएगी। हाथ कंगन को आरसी क्या वाली स्थिती है हमारे आसपास।
दोनो ही कविता काफी बढ़िया हैं।
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