
पैसो के आगे क्यो झुकते है रिश्ते
दर्द ही दर्द मेरी किस्मत में क्यो लिखते है रिश्ते !
इतने मतलबी हो गए है अपनी दुनिया में वो की
अब तो जरूरत पर भी कंहा दिखते है रिश्ते !!
खून के रिश्ते नाम के रिश्ते
चहरे पर हँसी लाये कलियों की तरह दिल के बाग़ में कंहा खिलते है रिश्ते !
गमो की आहट से ही अब क्यो हिलते है रिश्ते !
हमें अपना हिस्सा बना ले हमे अपनी साँसों में बसा ले
रोते हुई आँखों को हँसा दे खुशियों का अम्बार लगा दे
मंजिल तक साथ चले ऐसे कंहा अब मिलते है रिश्ते !!
14 comments:
bahut khub vijay bhai...
achha likha hai aapne....
badhai sweekaar karein....
सच्ची बात - सच्चे रिश्ते आज बहुत कम मिलते हैं मतलब परस्त ज्यादा.
वाह! रिश्तों को बड़ी खूबसूरती से शब्दों में पिरोया है!!
बहुत अच्छा लिखा है
सच तो ये है की इश्वर के अलावा जिस भी रिश्ते में हम अर्थ ढूंढना चाहेंगे
उलझ कर रह जाएँगे
read this :
http://my2010ideas.blogspot.com/2010/04/blog-post_04.html
अब तो रिश्ते भी व्यापार बन गए हैं...अच्छी रचना
Very good take on rista
...प्रसंशनीय रचना!!!
रिश्तों को बड़ी खूबसूरती से शब्दों में पिरोया है!!
आईये, मन की शांति का उपाय धारण करें!
आचार्य जी
रिश्तों की सार्थक पडताल।
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रूपसियों सजना संवरना छोड़ दो?
मंत्रो के द्वारा क्या-क्या चीज़ नहीं पैदा की जा सकती?
Is rand badalti duniya mein,
Kya tera hai kya mera hai?
Dekh bhai dekh!
Bahut acchhe!
bahut shaandar luekhn...
गमों की आहट से ही अब क्यों हिलते है रिश्ते !
रिश्ते ..... अब तो रिसते हैं
Bahut khub....
Bahut Achchhi rachana hai....
Isne to risto ka arth ko bata
diya........
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