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Monday, May 31, 2010

तेरा ख्याल


मेरे आंसू की कीमत लगाते हैं वो ....
जिन के होंटो पे हमने हसीं... दि थी कभी ॥
मुझ में समां के मुझ से जुदा होना चाहते है वो .....
जिन्होंने आने पे दस्तक भी दि न कभी ॥
वो बदलें इतनी जल्दी अपनी बातों से ....
इतनी जल्दी तो मौसम भी बदलते नही ॥
मैंने उन को कहा कुछ सब्र तो करो
मेरे अहसासों की कुछ कद्र तो करो ...
लेकिन वो तोड़ गए मुझ से रिश्ते सभी
अब कोई टूटे हुए को न तोड़े अभी ॥
इस तरह उसने लूटा मेरे जज्बातों को
मेरे आसूओं को कह गए बरसात वो
इस कद्र मिलें गम ख्यालात मैं ....
के अब तो मुस्कान भी चेहरे पे टिकती नहीं ॥
तेरा ख्याल दिल से जाता नहीं ॥ पर अब तू याद भी हम को आता नहीं
बस अश्कों को शब्दों में पिरोते है ..और नया सा कुछ लिख देते है यहीं ॥





10 comments:

nilesh mathur said...

बहुत सुन्दर!

EKTA said...

very nice..
as usual

एक बेहद साधारण पाठक said...
This comment has been removed by the author.
एक बेहद साधारण पाठक said...
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एक बेहद साधारण पाठक said...

आपने बड़ा ही अच्छा बुना है इस रचना को अपनी कपना शक्ति से..........

या कहें
शब्दों के मोतियों को आपने पिरो दिया है ख्यालों की डोरी से ......
धन्यवाद इस रचना के लिए .........

Unknown said...

so painful..but ture

M VERMA said...

अश्क जब कुछ् लिखते हैं तो सैलाब आता है

बहुत खूब

संजय भास्‍कर said...

यह पंक्तियाँ दिल में उतर गयीं.....

संजय भास्‍कर said...

तारीफ के लिए हर शब्द छोटा है - बेमिशाल प्रस्तुति - आभार.

Rohit Singh said...

अश्क तो किस्मत बन जाता है। कुछ बहा देते हैं कुछ सिर्फ पी जाते हैं। पर पीने वाले अंदर ही अंदर घुट जाते हैं। इश्क का पहलू हर किसी को रास नहीं आता। पर क्या करें तलाश भी तो नहीं रुकती।

रिश्ते तो पैसे के आगे अक्सर दम तोड़ देते हैं। एक ढू़ढो हजार मिसाल मिल जाएगी। हाथ कंगन को आरसी क्या वाली स्थिती है हमारे आसपास।

दोनो ही कविता काफी बढ़िया हैं।

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