
काश कैची होती , वक्त को काट लेती
सिलबट्टे पर ग़मों को बाँट लेती
काश नजरें ना होती कमजोर मेरी
आसानी से खुशियों को छांट लेती |
भर लेती अच्छे दिनों को अचार के मर्तबान में
जला देती बुरे दिनों को दूर कहीं शमशान में |
जो मेरी गली में होता अक्सर फेरा तेरा
मैं तुझ से थोड़े सुख उधार मांग लेती ..|
बदलना ही तेरी फितरत थी , बता देता
मैं तुझको कलेंडर सा दिवार पर टांग लेती |
तू वादा करता मुझसे, मौत के परे मिलने का
मैं उसी समय जिन्दगी को उलांग लेती |
जो मेरी गली में होता अक्सर फेरा तेरा
मैं तुझ से थोड़े सुख उधार मांग लेती
काश कैची होती , वक्त को काट लेती
सिलबट्टे पर ग़मों को बाँट लेती ..||
4 comments:
//सिलबट्टे पर ग़मों को बाँट लेती
//आसानी से खुशियों को छांट लेती |
bahut khoob sir.. bahut khoob.. mazaa aa gaya..
palchhin-aditya.blogspot.com
सुन्दर अभिव्यक्ति.
बदलना ही तेरी फितरत थी , बता देता
मैं तुझको कलेंडर सा दिवार पर टांग लेती |
adbhut.... vakya
बदलना ही तेरी फितरत थी , बता देता
मैं तुझको कलेंडर सा दिवार पर टांग लेती
वाह...बेजोड़ रचना...बधाई
नीरज
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