
ना जाने, मैं आईना हूँ , या हूँ मैं कोई अप्सरा ?
घूरते है लोग मुझे ऐसे , घर से निकलते ही |
हर एक की आँखें, करती है पीछा मेरा , रस्ते पर |
हर रोज होता है चिरहरण मेरा, उन आँखों से |
मुझे प्रतीत होता है , जैसे रोड पर खड़ा हर शख्स
कर रहा हो बलत्कार मेरा, आँखों से अपनी |
बस एक चीत्कार सी उठती है मन में मेरे ,
जो घर लोटने पर , आसुओं में कहीं छिप जाती है |
वो जो कहते थे, की हया होती हैं आँखों में
अब देखें वो आ कर , सिर्फ हवस भरी हुई है |
शर्म से ...जो आँखे झुकी रहती थी कभी
आज वो आँखे मेरे बदन पर गडी हुई है ||
2 comments:
एक विचारणीय विषय पर एक नज़र सर्थाओ पोस्ट आभार
behtreen vishay...........
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