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Friday, January 13, 2012

कल फिर यादों में, हम मिलें है


कल फिर यादों में, हम मिलें है
घर की सफाई में ,
ताक में पड़े , कुछ पुराने गम मिले है
कल फिर यादों में, हम मिलें है ||

पीला पड़ चुका, पुराना ख़त तुम्हारा
मेरे चेहरे को आज भी, लाल कर देता है
पहले ही निरुत्तर मैं ,
और वो फिर इक , नया सवाल कर देता है !
इन शब्दों से ना जाने, कितने जख्म मिले है ||
कल फिर यादों में, हम मिलें है ||

धुंधली होती है लिखावट , यादें हमेशा ताज़ी होती है
चेहरे की झुर्रियों में भी, कहीं कहानियां छुपी होती है
हमे जीने के आज फिर नये वहम मिले है |

घर
की सफाई में ,
ताक में पड़े , कुछ पुराने गम मिले है
कल फिर यादों में, हम मिलें है ||

3 comments:

विभूति" said...

बहुत खुबसूरत रचना अभिवयक्ति.........

Kailash Sharma said...

धुंधली होती है लिखावट , यादें हमेशा ताज़ी होती है
चेहरे की झुर्रियों में भी, कहीं कहानियां छुपी होती है

....शास्वत सत्य...बहुत सुन्दर भावमयी प्रस्तुति..

Aditya said...

//पहले ही निरुत्तर मैं ,
और वो फिर इक , नया सवाल कर देता है !

kamaal sirji.. kamaal.
bahut khoobsoorat panktiyaan..

kabhi waqt mile to mere blog par bhi aaiyega.. aapka swagat hai..
palchhin-aditya.blogspot.com

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