
ना शराब से है ना शबाब से है ,
मुझे मोहब्बत सिर्फ कलम किताब से है ||
तुझे मेरी जिन्दगी के खाते में, कोई गड़बड़ी नहीं मिलेगी ,
मैंने जी जिन्दगी, बड़े हिसाब से है ||
वो जिनकी आँखों को चुभती है, हँसी मेरी
वो सब कहतें है , हम बड़े खराब से है |
पर मै जो हूँ , वही दिखाता हूँ दुनियां को
मुझे सख्त नफरत, चेहरे पर नकाब से है ||
हम उठते है लेट , सोतें है लेट
हर काम भी हम करते है लेट |
हम अपने आप में थोड़े नवाब से है...||
वो सवाल उठा कर दुबक गया अपने बिल में
लोग कहतें है उसको डर मेरे जवाब से है |
पर हम सच को कहतें है सच , और गलत को कहतें है गलत
इसलिए उन्हें लगता है, हम बड़े बेहिसाब से है |
ना शराब से है ना शबाब से है ,
मुझे मोहब्बत सिर्फ कलम किताब से है ||
4 comments:
एक बार फिर आपकी कलम ने अपना लोहा मनवाया है...कमाल की रचना...बधाई...
नीरज
बहुत ख़ूब सर..
समय मिले तो मेरे ब्लॉग पर भी पधारने की कृपा किजियेगा..
http://palchhin-aditya.blogspot.com/
बहुत खुबसूरत रचना अभिवयक्ति.........
behtreen rachna..........
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