बचपन कैद रहिसों के मकानों में
रसोई में झूठे बर्तनों से ,खिलोने खेल रहें है
वो गरीबी का भारी बोझ...
अपने कोमल कन्धों पर झेल रहें है |
लोग देश के भविष्य को , कूड़ें में फेक रहें है |
सब मूक बन कर , नेहरु के गुलाब को
टुकड़ा टुकड़ा, बिखरते देख रहे है |
समाज चुप है , चुप सरकारें भी है
सब बचपन की लाश पर, अपनी रोटियां सेक रहें है |
बचपन यदि सही पल्लवित नहीं हुआ
तो एक सभ्य समाज , कैसे बना पाओगे ?
बचपन यदि बिगड़ा , अपना घर कैसे बचाओगे ?
समय है बचपन को सँभालने का ,
इस गुलाब को... महकती बगिया में ढालने का ||
2 comments:
बचपन यदि सही पल्लवित नहीं हुआ
तो एक सभ्य समाज , कैसे बना पाओगे ?
बचपन यदि बिगड़ा , अपना घर कैसे बचाओगे ?
सार्थक प्रश्न्।
अच्छी और सच्ची सोच ........समाज के लिए उम्दा उदाहरण !
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