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Saturday, April 28, 2012

क्या कभी जीया है, ऐसा जीवन ?



क्या कभी किसी की आवाज में, नमी महसूस की है ? 
क्या तुमने जिन्दगी में , जिन्दगी की कमी महसूस की है ?
क्या महसूस हुआ है तुम्हे, किसी गैर का दर्द 
क्या बिताई है खुले आकाश में ,एक रात सर्द ?
क्या किसी के सपनों को, अपनी जमीं दी है ?
क्या किसी की आँखों को, खुशियों की नमी दी है ?
क्या किसी के पैर के छालों पर, मरहम लगाईं  है 
क्या किसी तन्हा को दी, प्यार की दवाई है ?
खुद रहतें हुए अंधेरों में , क्या किसी को दिए उजालें है ?
किसी और के गम क्या, कभी खुद ने संभालें है ?
क्या किसी पैर की , काटों की, चुभन महसूस की है ?
क्या खुले में तपते सूरज की, अग्न महसूस की है ?

"गर ऐसा कुछ महसूस नहीं किया है 
तो प्यारे,
अब तक तुने जीवन ठीक से नहीं जीया है "|| 
 
केलेंडर के बदलते पन्नों के माफिक, जिन्दगी बिताई है 
तुने बस जिन्दा रहने की , एक रस्म निभाई है ||

1 comment:

विभूति" said...

प्रभावित करती रचना .
..

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