
बहुत दिनों बाद कुछ बहुत अच्छा लिखा है , उम्मीद है आप को पसंद आएगा , शब्दों को अपनी माँ से जोड़ कर देखना हर शब्द सांस लेता महसूस होगा :)
वक्त के पार ले चल , किसी नयी दुनिया में इस बार ले चल
इक अरसे से उसने देखी नहीं ख़ुशी , मुस्कराहट उसके लिए दो चार ले चल
किसी नयी दुनिया में इस बार ले चल |
कब से अकेले खड़ी है वो थामे उम्मीद का दामन
वक्त के थपेड़ों ने भी उसे टूटने ना दिया
उसके आस पास एक मजबूत रिश्ते की दीवार ले चल
किसी नयी दुनिया में इस बार ले चल |
एक उम्र से उसने अपने लिए कुछ नहीं माँगा
उपहार "जिन्दगी" का , लोगो की सेवा में अर्पण किया
आज तू काबिल उसकी वजह से , उसके लिए पूरा बाजार ले चल
किसी नयी दुनिया में इस बार ले चल |
मुद्दतों से उसकी हंसी नहीं सुनी किसी ने
आँखें उसकी भीगी नहीं ख़ुशी से कभी
आज उसके लिए कोई मुस्कराता हुआ विचार ले चल
किसी नयी दुनिया में इस बार ले चल |
गर तू ज़माने के बोझ तले दबा है
तेरे ऊपर है जिम्मेदारियां नई
छोड़ सारे उपहार , उसके लिए सिर्फ प्यार ले चल
किसी नयी दुनिया में इस बार ले चल |
6 comments:
Behtareen sir.. behtareen..
aankhein nam ho gai...
kabhi waot mile to mere blog par bhi aaiyega..
palchhin-aditya.blospot.in
एक उम्र से उसने अपने लिए कुछ नहीं माँगा
उपहार "जिन्दगी" का , लोगो की सेवा में अर्पण किया
आज तू काबिल उसकी वजह से , उसके लिए पूरा बाजार ले चल
किसी नयी दुनिया में इस बार ले चल |
वाह...वा...बेजोड़,..
नीरज
बहुत सुंदर मन के भाव ...
प्रभावित करती रचना ...
very nice feeling...
man karta hai baar baar padhta rahu..
bahut sunder man ke udgar hai.........
लम्बे अरसे बाद इन गलियों में आया हूँ आपकी तीनों कवितायेँ पढ़ी हर एक दूसरी से बेहतर लगती है पढ़ते वक़्त ..और हां आपकी ये कविता सोचने पर मजबूर करती है....
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