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Tuesday, August 23, 2011

करवटों के सहारे...



करवटों के सहारे.. हर रात बीती है
तन्हाई में मेरी, सुबह जीती है ...
वो चैन से सोता है , मुंह उधर कर
रोजाना मेरी आँखे , मेरे अश्क पिती है ||
करवटों के सहारे.. हर रात बीती है ...

ये किस मोड़ पर मेरा जीवन ,
कि मेरा अपना कुछ ना रहा ...|
ना आँखों में सपने रहे , ना सपनों का राजा,
अब मैं भी ना रहूँ ....?
क्या यही है वक्त का तकाजा ?

हर रोज उधेड़ जाता है, वों जख्म मेरे ...
जिन्हें कितनी मुश्किल से, काली रातें सीती है
करवटों के सहारे.. हर रात बीती है ||

चारों और इतना अँधेरा क्यूँ है ?
मेरा गम इतना गहरा क्यूँ है ?
जिसमें बसती थी, रूह मेरी
वों बिन मेरे भी , पूरा क्यूँ है ?

ना जानें भाग्य कि कैसी "नीयती है
सब कुछ पा कर भी , जिन्दगी रिती है
करवटों के सहारे.. हर रात बीती है ||

8 comments:

वीना श्रीवास्तव said...

खूबसूरत एहसास...

Dev said...

सुन्दर रचना .....बहुत खूब

विभूति" said...

करवटों के सहारे.. हर रात बीती है ||बहुत ही सुन्दर वयक्त किया है अहसासों को...

Shubham Jain said...

kya bolu...

dard ko shabdo me bahut khub piroya hai...

Krishna Kumar Vyas said...

bahot hi marmik chitran hey aaj ke paraivarik tanav or tane bane ka...rachna ke liye badhai

vandana gupta said...

ये भी ज़िन्दगी का एक सच है…………
शायद इसी तरह ज़िन्दगी करवट लेती है
ना सिलवट मिटती है ना हकीकत बदलती है

Unknown said...

हर रोज उधेड़ जाता है, वों जख्म मेरे ...
जिन्हें कितनी मुश्किल से, काली रातें सीती है
करवटों के सहारे.. हर रात बीती है ||

Unknown said...

हर रोज उधेड़ जाता है, वों जख्म मेरे ...
जिन्हें कितनी मुश्किल से, काली रातें सीती है
करवटों के सहारे.. हर रात बीती है ||


veryyyyyyyyy nice

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