
करवटों के सहारे.. हर रात बीती है
तन्हाई में मेरी, सुबह जीती है ...
वो चैन से सोता है , मुंह उधर कर
रोजाना मेरी आँखे , मेरे अश्क पिती है ||
करवटों के सहारे.. हर रात बीती है ...
ये किस मोड़ पर मेरा जीवन ,
कि मेरा अपना कुछ ना रहा ...|
ना आँखों में सपने रहे , ना सपनों का राजा,
अब मैं भी ना रहूँ ....?
क्या यही है वक्त का तकाजा ?
हर रोज उधेड़ जाता है, वों जख्म मेरे ...
जिन्हें कितनी मुश्किल से, काली रातें सीती है
करवटों के सहारे.. हर रात बीती है ||
चारों और इतना अँधेरा क्यूँ है ?
मेरा गम इतना गहरा क्यूँ है ?
जिसमें बसती थी, रूह मेरी
वों बिन मेरे भी , पूरा क्यूँ है ?
ना जानें भाग्य कि कैसी "नीयती है
सब कुछ पा कर भी , जिन्दगी रिती है
करवटों के सहारे.. हर रात बीती है ||
8 comments:
खूबसूरत एहसास...
सुन्दर रचना .....बहुत खूब
करवटों के सहारे.. हर रात बीती है ||बहुत ही सुन्दर वयक्त किया है अहसासों को...
kya bolu...
dard ko shabdo me bahut khub piroya hai...
bahot hi marmik chitran hey aaj ke paraivarik tanav or tane bane ka...rachna ke liye badhai
ये भी ज़िन्दगी का एक सच है…………
शायद इसी तरह ज़िन्दगी करवट लेती है
ना सिलवट मिटती है ना हकीकत बदलती है
हर रोज उधेड़ जाता है, वों जख्म मेरे ...
जिन्हें कितनी मुश्किल से, काली रातें सीती है
करवटों के सहारे.. हर रात बीती है ||
हर रोज उधेड़ जाता है, वों जख्म मेरे ...
जिन्हें कितनी मुश्किल से, काली रातें सीती है
करवटों के सहारे.. हर रात बीती है ||
veryyyyyyyyy nice
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