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Monday, July 12, 2010

मेरा बचपन


बचपन का ज़माना होता था ,खुशियों का खज़ाना होता था .
चाहत चाँद को पाने की ,दिल तितली का दीवाना होता था .
खबर न थी कुछ सुबह की ,न शामों का ठिकाना होता था ।

थक हार के आना स्कूल से ,पर खेलने भी जाना होता था .
दादी की कहानी होती थी ,परियों का फ़साना होता था .
बारिश में कागज की कश्ती थी ,हर मौसम सुहाना होता था ।

हर खेल में साथी होते थे ,हर रिश्ता निभाना होता था .
पापा की वो डांट पर मम्मी का मनाना होता था ॥

गम की जुबान न होती थी ,न ज़ख्मो का पैमाना होता था .
रोने की वजह न होती थी ,न हसने का बहाना होता था ॥
अब नहीं रही वो जिंदगी ,जैसे बचपन का ज़माना होता था ....

2 comments:

विजय पाटनी said...

bahut hi badiya shuruat hai
aap ka swagat hai dil ki kalam pe
AISE HI APNE VICHAR LOGO TAK PAUCHATE RAHIYE
AABHAR OR WELCOME SATYAM
:)

संजय भास्‍कर said...

बहुत पसन्द आया
हमें भी पढवाने के लिये हार्दिक धन्यवाद
बहुत देर से पहुँच पाया ....माफी चाहता हूँ..

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