थकी मांदी सी रात है , मन मौजी सहर है
मैं जिस से भी मिला , अपना बन कर मिला
फिर भी जाने क्यों अब तक अंजाना ये शहर है
न मंजिल का पता है, न रास्तों की खबर है ;)
मैं जिन से दिल से जुड़ा , उनसे कभी न रूठा
और जिस से दिल से रूठा , फिर उससे कभी न जुड़ा
फूलों वाला जो दरख्त दीखता है दूर से
असल में वो काटों वाला "शजर" है
न मंजिल का पता है, न रास्तों की खबर है ;)
पूरी है जिंदगी पर प्यार अभी भी बाकी है
उस एक नशे को खोजता अब तक ये साकी है
मुकम्मल है आईना मेरा, कुछ चेहरों पर फिर भी नजर है
न मंजिल का पता है, न रास्तों की खबर है ;)
मेरे बहीखाते को मत रखना तुम देर तक सवालों में
दो आँखों का सुकून और चार लबों पर खुशियाँ
बस यही जोड़ा है, गुजरे हुए सालों में। .. :)
जब वो रोती आँखों से मुस्करा देते है, हमें याद कर
तभी झूमती गाती अपनी भी सहर है
न मंजिल का पता है, न रास्तों की खबर है ;)
और चलते चलते
के अब तक रखा है , आगे भी साथ रखना
अपनी हर दुआ में , मुझे याद रखना
खुश हूँ अब तक क्यूंकि आप की दुआओं में बड़ा असर है
न मंजिल का पता है, न रास्तों की खबर है ;)
1 comment:
आपकी इस पोस्ट को आज के ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है...
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