
क़ानून को हाथ में लिए खड़ी है ,
आँखों पर काली पट्टी चडी है
हर पुरुष उसके आगे नतमस्तक है
वो गंगा है , यमुना है , सरस्वती है
सब का पाप धोने के लिए बहती है
हर पुरुष उनके आगे नतमस्तक है
वो वैष्णो देवी मै है , वो काली है , अम्बे है,
वो शेरो वाली है , वो माँ संतोषी है
हर पुरुष उनके आगे नतमस्तक है
वो ही तो है , जिस के आँचल के नीर से पल कर "जग" बड़ा हुआ है
आज हर पुरुष अपने पैरों पर खड़ा हुआ है
हर पुरुष उनके आगे भी नतमस्तक है |
फिर जब तुम स्त्री की इतनी इज्जत करते हो
उसे मंदिर में पूजते हो , उसके पानी में पाप धोते हो
उसके आँचल में पल कर बड़े होते हो ...|
फिर क्यूँ ... सरे आम उसी स्त्री को नोचतें हो ?
फिर क्यूँ ... सरे आम उसी स्त्री को नोचतें हो ?
क्यूँ उसके जिस्म की इतनी भूख है तुम्हे ?
क्यूँ जर्रा जर्रा कर देना चाहते हो "स्त्रीत्व" को तुम ?
क्यूँ "हर दिन" , "हर अखबार" , का "हर पन्ना"
स्त्री के आसूं से सजा होता है ?
क्यूँ स्त्री के लिए मंदिर के बाहर होना
इतनी बड़ी "सजा" होता है ?
आखिर कब तक चलेगी ये दानवता
आखिर कब तक शर्मसार होती रहेगी मानवता ???
जवाब मत दीजिये , वरन अपने अंदर जवाब खोजिये :)
7 comments:
जवाब मत दीजिये , वरन अपने अंदर जवाब खोजिये :)
काश विजय जी …………ऐसी मानसिकता होती ऐसी खोजी प्रवृति होती तो ये दानवता जन्म ही ना लेती।
आखिर कब तक शर्मसार होती रहेगी मानवता ???
जवाब मत दीजिये , वरन अपने अंदर जवाब खोजिये :)
ये बात तो हर आम आदमी की हुई ....पर इसकी शुरुआत तो अपने ही घरों से भी तो होती हैं
काश ...हर आदमी आपके सवाल को सोचे सके ?
क्यूँ "हर दिन" , "हर अखबार" , का "हर पन्ना"
स्त्री के आसूं से सजा होता है ?
क्यूँ स्त्री के लिए मंदिर के बाहर होना
इतनी बड़ी "सजा" होता है ?
jhanjhod jaate hai aise sawaal..
bahut hi sateek rachna
palchhin-aditya.blogspot.in
सवाल तो बहुत है.... जवाब तो हमें खुद से तलाशने पड़ेंगे .....
बहुत सुन्दर रचना शेयर करने के लिये बहुत बहुत आभार
Active Life Blog
समय ही जवाब दे देगा एक दिन ||
समय ही जवाब दे देगा एक दिन ||
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