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Thursday, October 27, 2011

दिल जली दिवाली


वो दोस्तों के साथ मनाता रहा जश्न सारी रात ,
मैं करवट बदल के रात बिताती रही
उसे पसंद था अँधेरा.... ताउम्र " विजय " ,
मैं एवई दीप जलाती रही ||

वो बांटता रहा खुशियाँ, गेरों के साथ दिवाली की
मैं खुद से ही, दिल को मनाती रही ||
वो करता रहा रोशन, गैरों के दीये
मैं यहाँ अकेले , अपना दिल जलाती रही ||
होगी लोगों के लिए खास, यह अमावस की रात
मैं तो हर रात, अमावस मैं बिताती रही ||

जिसें दिया था हक़,सात जन्मों का मैंने
वो एक दिन के लिए भी, मेरा हो ना सका |
वो लुभाता रहा, किसी और को अपने प्यार से
मैं शादी की तस्वीरों से, खुद को लुभाती रही ||

मेरे दिल का दीया बुझ गया
तेरे प्यार की कमी से , कब का |
मै सिर्फ रस्म निभाने के लिए
त्यौहार बनाती रही ||
उसे पसंद था अँधेरा.... ताउम्र " विजय " ,
मैं एवई दीप जलाती रही ||

3 comments:

विभूति" said...

मेरे दिल का दीया बुझ गया
तेरे प्यार की कमी से , कब का |
मै सिर्फ रस्म निभाने के लिए
त्यौहार बनाती रही ||
उसे पसंद था अँधेरा.... ताउम्र " विजय " ,
मैं एवई दीप जलाती रही ||भावपूर्ण अभिवयक्ति.....

vandana gupta said...

उफ़ विजय जी दर्द ही दर्द भर दिया।

Kailash Sharma said...

जिसें दिया था हक़,सात जन्मों का मैंने
वो एक दिन के लिए भी, मेरा हो ना सका |
वो लुभाता रहा, किसी और को अपने प्यार से
मैं शादी की तस्वीरों से, खुद को लुभाती रही ||

....बहुत मर्मस्पर्शी...लाज़वाब !

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