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Wednesday, August 10, 2011

बंद झरोखे से "सपनें"


कुछ "सपनें" भी बंद झरोखे से है ....
जिनकें कपाटों को गर खोल दिया तो
तूफ़ान सा आ जाएगा ||
"ताश के पत्तों सा जीवन"
बिखर जाएगा ...
पर आंधी के डर से
कब तक बंद रखा जा सकता है
दरवाजों को ?
"धुप" का इंतज़ार भी तो है
"सीली" हुई सी "दीवारों" को ...
और अँधेरे के खात्मे के लिए
कुछ "रौशनी" भी तो चाहियें ||
और कुछ "ताज़ी हवा" कि भी
दरकार है जीने के लिए ...||

3 comments:

vandana gupta said...

बहुत सुन्दर भावाव्यक्ति…………खोल दीजिये दरवाज़ो को …………ताज़ा हवा सब बदल देगी।

Unknown said...

बहुत सही , पर अच्छा है कुछ सपने , सपने ही रहे || आखिर कर हर सपने को सच नयी किया जा सकता , कही दुसरे सपनो को चोट न पहुच जाए

S.N SHUKLA said...

रक्षाबंधन एवं स्वतंत्रता दिवस पर्वों की हार्दिक शुभकामनाएं .

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