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Tuesday, June 28, 2011

बोझिल रिश्ते ...


जब रिश्तों से घुट के कोई अपनी जान देता है
तो लगता है क्यों ऊपर वाला ये रिश्ते तमाम देता है ?
वो तो बैठा है धुनी रमा के बेफिक्र
यहाँ तो भाई - भाई पे इल्जाम देता है
क्यों ऊपर वाला ये रिश्ते तमाम देता है ?

सात जन्मों तक रिश्ता निभाने वाले
ऊब जाते है दो चार सालों में ...
मुकद्दर से मिला है जो रिश्ता , वो भी आ जाता है सवालों में ?
इतनें जख्म दें देतें है कुछ लोग , कि मरहम भी कहाँ आराम देता है
क्यों ऊपर वाला ये रिश्ते तमाम देता है ?

अब तो खून के रिश्ते इंसानियत का भी खून कर रहे है
नौ महीने रखा कोख में जिसको ,आज माँ बाप उसी से डर रहे है
हर फरियादी को कहाँ वो मुक्कमल इनाम देता है
क्यों ऊपर वाला ये रिश्ते तमाम देता है ?

मैं इस कद्र खौफजदां हूँ इन रिश्तों से , कि सब से किनारा कर लिया है
जो देता है सुकून दिल को, उसी को जीने का सहारा कर लिया है
अक्सर धोखा मिला है अपनों से हमें , अब शायर दोस्ती को ही सलाम देता है|
क्यों ऊपर वाला ये रिश्ते तमाम देता है ?

9 comments:

Anonymous said...

"अब तो खून के रिश्ते इंसानियत का भी खून कर रहे है
नौ महीने रखा कोख में जिसको ,आज माँ बाप उसी से डर रहे है"

आज के इंसान को आइना दिखाती मार्मिक प्रस्तुति - बधाई

arvind said...

bahut hee maarmik...samvedansheel post.achee kavitaa.

कमल रामवानी सारांश said...

Wakai aaj ke sandharbh me sateek.....rachna ke liye badhaai....

vandana gupta said...

रिश्तों का बिल्कुल सही आकलन किया है।

आशुतोष की कलम said...

रिश्तों का सुन्दर चित्रण..परिस्थितियां भी जिम्मेंदार हैं रिश्तों के टूटती डोर के लिए

वीना श्रीवास्तव said...

आजकल रिश्ते बचे ही कहां हैं....

Unknown said...

Amazingly written Poem on relation...

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

रिश्तों का बदलता रूप दिखाती सुन्दर अभिव्यक्ति!

Ankur Jain said...

khubsoorat prastuti...rishton ko aaina dikhati prastuti

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