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Wednesday, June 8, 2011
पराया हुआ देश ...
हम अपने देश में ही पराये हो गए है , ये कौन सी हवा बहने लगी है..?
चंद विदेशी हाथ बटोरने में लगे है , हमारी खून पसीने कि गाढ़ी कमाई ,
साधू को बना दिया अपराधी इन्होने , और आतंकवादी बने है इनके जमाई ||
भ्रष्टाचार से लड़ने वालो को भी सरकार, साम्प्रदायिक ताकतें कहने लगी है
हम अपने देश में ही पराये हो गए है , ये कौन सी हवा बहने लगी है ||
जिन को हमने चुना देश चलाने को, वो हमें ही चुन चुन के मार रहे है ?
हरिश्चंद्र के देश में सच कि आवाज़ उठाने वाले, झूट के आगे हार रहे है ||
वाल्मीकि किस हक़ से लिखे अब रामायण, रामलीला में भी रावण सेना रहने लगी है||
हम अपने देश में ही पराये हो गए है , ये कौन सी हवा बहने लगी है
गांधी के देश में सत्याग्रह हो गया पाप ,अपने हक़ के लिए लड़ना भी बन गया अभिशाप ||
गांधी के आदर्शो को गांधी ने कर दिया साफ़ , गांधी जिसकी जेब में वो ही अब माई बाप ||
आम आदमी कि मजाल क्या सर उठा के जिये,
गांधी कि आत्मा भी अब यहाँ सहमी सहमी रहने लगी है |
हम अपने देश में ही पराये हो गए है , ये कौन सी हवा बहने लगी है..?
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3 comments:
अच्छे भाव...
बहुत सुन्दर भावाव्यक्ति।
amazing , so true and well written
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