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Tuesday, February 8, 2011

कोना ..!!


घर के एक "कोने" में सिमटी हुई, मुरझाई सी... मेरी जिन्दगी
खुद के होने का अहसास तेरी आँखों में ढूंढती,..घबरायी सी मेरी जिन्दगी
जिस दिल में घर बनाने, निकले थे घर से हम....
उस दिल के एक "कोने" में कहीं सिसकती हुई, लडखडाई सी मेरी जिन्दगीं.. ||
घर के एक "कोने" में सिमटी हुई मुरझाई सी... मेरी जिन्दगी ...

मेरे नसीब ने मुझे दिया सिर्फ "कोना"...
मेरे, तेरे जीवन का जरुरी हिस्सा है अब ये "कोना"...
कभी आँखों को अखरता "कोना" तो कभी दिखावें को सजता संवरता "कोना"
कभी बारिश से बचाता "कोना" तो कभी अँधेरे से डराता "कोना"
खोयी हुई चीजों को मिलाता "कोना" नए रिश्तों को बनाता "कोना"
कुछ हसीं ख्वाब आँखों मे सजाता "कोना"...पूरे घर का बोझ अपने कंधो पे उठाता "कोना"

उसी "कोने" में अपने सपनों को हर बार पीछे छोडती, खुद से भागती सी मेरी जिन्दगी ..
रोज टूट - टूट कर खुद को फिर से जोड़ती , एक शिल्पकार सी ...मेरी जिन्दगी ..
मिट चुके अस्तित्व को फिर से बनाती,किसी बंद व्यापार सी ...मेरी जिन्दगी ॥
हर बार अकेलेपन में तुझे बुलाती,चीत्कार सी ...मेरी जिन्दगी
घर के एक "कोने" में सिमटी हुई मुरझाई सी... मेरी जिन्दगी ||
खुद के होने का अहसास तेरी आँखों में ढूंढती,..घबरायी सी मेरी जिन्दगी

9 comments:

संजय भास्‍कर said...

ह्र्दय की गहराई से निकली अनुभूति रूपी सशक्त रचना
कविता के साथ चित्र भी बहुत सुन्दर लगाया है.

संजय भास्‍कर said...

बसंत पंचमी के अवसर में मेरी शुभकामना है की आपकी कलम में माँ शारदे ऐसे ही ताकत दे...:)

विजय पाटनी said...

dhnyavad sanjay ji :)

आशीष मिश्रा said...

बहोत ही सुन्दर एवं भावमयी रचना ..........

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

मन को छू गये आपके भाव। बधाई।

---------
ब्‍लॉगवाणी: एक नई शुरूआत।

Shubham Jain said...

bahut sundar...

Shubham Jain said...
This comment has been removed by the author.
Unknown said...

Very nice

sumeet "satya" said...

Sashakt Rachna.....

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