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Tuesday, March 8, 2011
अनजानी हमसफर
कभी कभी अनजाने में ही शब्द कविता का रूप ले लेते हैं , कल रात कुछ ऐसा हमारे साथ भी हुआ है ट्रेन कि उस अनजान हमसफर के नाम हमारा प्यार भरा सलाम :-
वो तन्हाँ सफ़र था ...जिस में वो कुछ पल का हमसफर था ॥
हम ट्रेन कि रफ़्तार और आईपॉड के संगीत मे खोये थे
कुछ जागे थे कुछ सोये थे ||
साइड सीट से ,कर रहे थे पूरी ट्रेन का मुआयना ..
और अपने साथ कि सीट पे बाकी था किसी का आना ...
हसीं इत्फाक देखिये कि उस अनजान शख्स ने
अपनी सीट उस "अनजानी हसीना" से बदली..
और हमे कुछ नयी रचना लिखने को मिली ...
खामोश निगाहें , मासूम चेहरा , जुल्फों को फैलाये , अपने में ही समायें
वो आ कर बैठी थी मेरे सामने गुमसुम सी ...
लाखो सवाल लिये , लेकिन किसी से बिना कुछ कहे
वो आ कर बैठी थी मेरे सामने चुप चुप सी ....
उसे कुछ झिजक सी थी , शायद कुछ वो थकी सी थी
मंजिल कि आस लिये , उसकी नजरें रुकी सी थी
अपनी ही माटी कि सुगंध थी उसकी बातो में
और कोई खास अपना था उसकी यादों में ||
उसे चिंता थी अपने सामान कि
और पढ़ सकती थी वो आँखे हर इंसान कि ...
नजाकत भरी उसकी आँखे पूरे समय झुकी सी थी ||
धडकन अपनी भी तो रुकी सी थी ||
बातें कुछ ही हुई थी हमारे बीच हलकी बारिश कि रिमझिम सी ..
वो बैठी थी मेरे सामने गुमसुम सी ...
पूरे रास्ते वो मौन थी , न जाने वो अनजानी हसीना कोंन थी ?
एक हसीं ख्वाब था जो गहरी नींद में कहीं खो गया ... ||
वो चली गयी गहरी रात में , और में बुद्धू बड़ी जल्दी सो गया ||
Labels:
विजय पाटनी
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10 comments:
2 gud poem......
nice story ...
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (10-3-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
:) बहुत खूब....
खुबसुरत रचना। दिल में उतर गई। आभार।
बहुत खूबसूरत भावमयी प्रस्तुति के लिए धन्यवाद|
भावपूर्ण अभिव्यक्ति.....बहुत सुंदर
भावपूर्ण अभिव्यक्ति.....बहुत सुंदर
Very nice poem...... :) :)
दिल को छू गयी बॉस बहुत खूब ..........
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