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Wednesday, August 12, 2009

तुम्हारी ही इबादत

दिल के आशियाने को,तुम्हारी यादो से सजाया करते हैं
तुमसे दूर रहने के गम को,कुछ इस तरह भुलाया करते हैं
कितने हसीं थे वो पल जब हम साथ थे
अब उन लम्हों को याद कर,कभी-कभी मुस्कुराया करते हैं
क्या हुआ गर खुदा को,हमारा साथ रहना मंजूर नही
अभी बी जीते हैं एक दूजे के लिए,ये बी तो कुछ कम नही
लाख कोशिश की उसने राहे जुदा करने की
पर दिल से मिटा पाये प्यार,ऐसा कभी मुमकिन नही
जहाँ भी रहेंगे सनम,बस तुम्हे ही याद करेंगे
तुमको मान कर खुदा,बस तुम्हारी ही इबादत करेंगे
मेरे प्यार पर है बस तुम्हारा ही हक
जब तक ये साँसे चलेंगी,बस तुम्हारे ही होकर रहेंगे

2 comments:

rahulkp09 said...

jay jinendra shubham G aapki ye kavita mere dil ko chu gai wah kya baat hai meri zindgi bhi kuch isi trh hai. bahut accha likha hai. aapka intjaar hai mere blog me. www.rahulkp09.blogspot.com
www.pachori.blogspot.com .

EKTA said...

rahul ji ye poem ekta ki hai shubham ji ki nahi

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