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Saturday, January 5, 2013

सिर्फ इतना सा कर लो ..




सुनो जहमत करो, अपनी सोच को बदलने की जरा सी ...
आज उसका दर्द , जो तुम्हे, महसूस नहीं हो रहा , 
कल वो दर्द, तुम्हे भी हो सकता है 
दर्द को बांधों मत किसी दायरे में ...|

कुछ देर के लिए आईपॉड के इअर फ़ोन को कानों से हटा कर, 
सुन भी लिया करो ..
की कोई दर्द से करहा तो नहीं रहा सड़क किनारे ...?

तुम्हारी आँखें अनदेखा क्यूँ कर देती है ..?
सड़क किनारे सर्दी में ठिठुरते, नग्न आदमी को
धुप से बचने का काल चश्मा , इंसानियत पर क्यूँ लगा लेते हो ?

खून रिसता क्षत विक्षत शरीर जो दिखाई पड़े
भयभीत मत हो , मुहं पोछने का रुमाल रखा है न जेब में माँ ने?
बांध दो उसे ..खून का रंग तुम्हरा भी same 2 same है ।

मोबाइल रखते हो न हाथ में ,जिसे तुम छेड़ते रहते हो बात ही बात में?
KBC का नंबर भी SAVE होगा उसमे ?
उसमे 108/100 भी save कर के रखो ..
हादसे के वक्त अमिताभ से ज्यादा, एम्बुलेंस काम आती है ...

सिर्फ इतना सा कर लो ,
क्यूंकि मोमबत्तियों जलाने से देश रोशन होता यदि
तो आजादी के 65 वर्षों बाद भी हम अंधेरें में नहीं "जी" रहे होते |
आहुति देता है चाँद , तब जा कर रोशन सवेरा होता है
जलाना पड़ेगा खुद को भी और दिमाग की बत्ती को भी, मोमबत्ती की तरह :)

3 comments:

Anonymous said...

"आहुति देता है चाँद , तब जा कर रोशन सवेरा होता है
जलाना पड़ेगा खुद को भी और दिमाग की बत्ती को भी, मोमबत्ती की तरह :)"
अत्यावश्यक सन्देश की प्रभावशाली प्रस्तुति

विभूति" said...

सशक्त और प्रभावशाली रचना...

दिगम्बर नासवा said...

बहुत प्रभावी ... शशक्त ... प्रहार करती है मर्म पे आपकी रचना ...

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