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Monday, July 23, 2012

पांचवी गजल

उसकी हर हरकत का हिसाब रखते है
हम दिल में,  मोहब्बत की किताब रखतें है !!

वो चेहरे पर चाँद लिए घुमती है
हम आँखों में.. हमेशा रात रखतें है |

जब भी मिलें हमसे ..बैचैनी से मिलें वो
इसलिए हर बार, अधूरी मुलाक़ात रखतें है ||

पतझड़ में भी सावन सी बदली हो जाये
अपने शब्दों में... हर वो बात रखते है ||

कुछ थामना चाहेगी , जब थक जायेगी ज़माने से
इसलिए , हम ...हमेशा ...खाली हाथ... रखतें है

जाने कब उसकी पलकों से उतर आयें जिन्दगी
एक अधुरा ख्वाब  हमेशा साथ रखतें है !!

उसकी हर हरकत का हिसाब रखते है
हम दिल में,  मोहब्बत की किताब रखतें है !!

1 comment:

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...

.

"वो चेहरे पर चांद लिए घूमती है
हम आंखों में.. हमेशा रात रखतें है"


वाऽऽह ! बहुत ख़ूब !

…लेकिन विजय जी, ग़ज़ल की बुनावट अलग होती है … … …

पुरानी पोस्ट्स में ग़ज़ल नाम से आपकी अन्य रचनाएं भी अभी देखी … भाव बहुत सुंदर हैं ।

मंगलकामनाओं सहित…
-राजेन्द्र स्वर्णकार

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