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Saturday, May 26, 2012

लघु कथा :- महंगाई



पापा कितनी महंगाई है , और देखो , सरकारी अफसरों का महंगाई भत्ता बढ़ गया है , पापा कल मुझे अपने दोस्तों की पिक्चर दिखाने ले जाना है तो मेरी पॉकेट मनी भी जरा बढ़ा दो अब , और सुनिए जी मेरी किटी पार्टी वालों ने , घुमने जाने का प्लान बनाया है , तो मुझे भी इस बार दो हजार रुपये ज्यादा चाहिए | और हाँ एक नयी साडी तो बनती है, सेलरी बढ़ने की ख़ुशी में...क्यूँ बेटी ?
हाँ माँ , और मुझे भी नया मोबाइल चाहिये |

इतने में माँ का फ़ोन आता है , पिछले कई सालों से , माँ को सिर्फ पांच सौ रुपये महीने दिए जा रहें है , माँ को ख़ुशी हुई की बेटे की सेलेरी बढ़ गयी है , माँ ने फोन पर बेटे को बधाई दी , सेलेरी बढ़ने की | बेटे ने माँ को कहा ...माँ , इस महीने पांच सौ रुपये भेज नहीं पाऊंगा , थोडा खर्चा ज्यादा हो रहा है इस महीने , तू एडजस्ट कर लेना , माँ : - बेटा पिछले महीने भी तुने पैसे नहीं भेजे थे , और इस महीने तो सेलेरी बढ़ी है,

बेटा : माँ पैसे पेड़ पर नहीं उगते , सेलेरी बढ़ी है , तो महंगाई कितनी है , यहाँ तो बात - बात के पैसे लगते है , तुम्हरा दो लोगो का वहां खर्चा ही क्या है ?
नहीं इस महीने पैसे नहीं भेज सकता और फ़ोन काट दिया |

इधर उस बूढी माँ ने , साडी वाले से कहा, भैया पांच साडी ज्यादा दे दो , मै शाम तक फोल लगा कर भिजवा दूंगी , और वो हिसाब लगाने लगी की दस साडी की , फोल से , मिलने वाले 75 /- रुपये से दो दिन का गुजारा, तो हो ही जाएगा :)



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आज से हम इस ब्लॉग पर स्वरचित लघु कथाओं को जगह दे रहें है , लघु कथा नाम से टेग में आप को ये कहानियां पढने मिलेगी , आशा है आप इन कहानियों को पढेंगे और दिल से इसके दर्द को महसूस करेंगे , धन्यवाद :) आप के स्नेह  की अपेक्षा में हमेशा... :) 
दिल की कलम से ... 
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