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Saturday, May 26, 2012

तेरे बिना बेस्वाद जी जिन्दगी


तेरे बिना बेस्वाद जी जिन्दगी ...खाए जा रहा हूँ 
मै बस जीने की अपनी भूख, मिटायें जा रहा हूँ |
तुझ को देख  कर ...किया था वादा ...हमेशा मुस्कराने का 
बस वोही  अधूरी मोहब्बत ...अब तक ....निभाए जा रहा हूँ 
तेरे बिना बेस्वाद जी जिन्दगी ....खाए जा रहा हूँ |

चाँद को देखा नहीं , तेरे चेहरे को देखने के बाद
चांदनी रात में सिर्फ , तारों से काम चला रहा हूँ 
तेरे बिना बेस्वाद जी जिन्दगी ....खाए जा रहा हूँ |
यूँ अकेले अकेले जीना भी कोई  जीना है ? 
जिन्दा हूँ... खुद को भरमाये जा रहा हूँ 
तेरे बिना बेस्वाद जी जिन्दगी ...खाए जा रहा हूँ 
मै बस जीने की अपनी भूख, मिटायें जा रहा हूँ |

9 comments:

विभूति" said...

भावों से नाजुक शब्‍द को बहुत ही सहजता से रचना में रच दिया आपने.........

yashoda Agrawal said...

असरदार प्रस्तुति
सादर

Madhuresh said...

वाह, वाह! बहुत खूब...
मस्त लगी!!

Madhuresh said...

वाह, वाह! बहुत खूब...
मस्त लगी!!

स्वाति said...

bahut hi pyari rachna....

Brijendra Singh said...

komal bhavon se saji Swadisht Rachna Thi.. Badhayi Vijay JI!!

मेरा मन पंछी सा said...

दर्द को रचना में बखूबी व्यक्त किया है..
सुन्दर भावपूर्ण रचना...

Sawai Singh Rajpurohit said...

बेहतरीन रचना...सुंदर प्रस्तुति..आभार

पढ़े इस लिक पर
दूसरा ब्रम्हाजी मंदिर आसोतरा में जिला बाडमेर राजस्थान में बना हुआ है!
....

Anjani Kumar said...

सुन्दर रचना .... मन की व्यथा को उजागर करती हुई

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