तेरे बिना बेस्वाद जी जिन्दगी ...खाए जा रहा हूँ
मै बस जीने की अपनी भूख, मिटायें जा रहा हूँ |
तुझ को देख कर ...किया था वादा ...हमेशा मुस्कराने का
बस वोही अधूरी मोहब्बत ...अब तक ....निभाए जा रहा हूँ
तेरे बिना बेस्वाद जी जिन्दगी ....खाए जा रहा हूँ |
चाँद को देखा नहीं , तेरे चेहरे को देखने के बाद
चांदनी रात में सिर्फ , तारों से काम चला रहा हूँ
तेरे बिना बेस्वाद जी जिन्दगी ....खाए जा रहा हूँ |
यूँ अकेले अकेले जीना भी कोई जीना है ?
जिन्दा हूँ... खुद को भरमाये जा रहा हूँ
तेरे बिना बेस्वाद जी जिन्दगी ...खाए जा रहा हूँ
मै बस जीने की अपनी भूख, मिटायें जा रहा हूँ |
9 comments:
भावों से नाजुक शब्द को बहुत ही सहजता से रचना में रच दिया आपने.........
असरदार प्रस्तुति
सादर
वाह, वाह! बहुत खूब...
मस्त लगी!!
वाह, वाह! बहुत खूब...
मस्त लगी!!
bahut hi pyari rachna....
komal bhavon se saji Swadisht Rachna Thi.. Badhayi Vijay JI!!
दर्द को रचना में बखूबी व्यक्त किया है..
सुन्दर भावपूर्ण रचना...
बेहतरीन रचना...सुंदर प्रस्तुति..आभार
पढ़े इस लिक पर
दूसरा ब्रम्हाजी मंदिर आसोतरा में जिला बाडमेर राजस्थान में बना हुआ है!
....
सुन्दर रचना .... मन की व्यथा को उजागर करती हुई
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